पवित्र आत्मा के फल
पवित्र आत्मा के फल के बारे में आप को बाइबल में से ही मिलता हैं। बाइबल में जब भी फल शब्द का उपयोग किया जाता हैं तो उसका अर्थ खाने वाला फल नहीं बल्कि जीवन को जीने के तरीके से हैं। जैसा यीशु मसीह ने मत्ती 7:20 जब झूठे मसिहियों के बारे बताते है तब प्रभु ने भी ये ही कहा था कि तुम उनको उनके फलों से पहचान जाओगे। वैसे ही परमेश्वर का वचन हमको पवित्र आत्मा के फल के बारे में बताता हैं जिसको आप गलातियों 5:22- 23 पर आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, शान्ति, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, 23 नम्रता, और संयम है****

तो आज हम इस लेख में पवित्र आत्मा के फल के बारे में अध्ययन करेंगे। ताकि आप जब भी इस \बात को सोचे कि क्या मुझे पवित्र आत्मा मिला है तो इस बात पर जरूर विचार करना कि आपका जीवन पवित्र आत्मा के फल के मुताबिक है या नहीं।
पवित्र आत्मा के फल कितने हैं ?
पवित्र आत्मा के फल के बारे में आपको इंटरनेट पर बहुत सारे ऐसे विषय मिल जायेगे जो बताएंगे कि पवित्र आत्मा के फल 9 या 12 फल। जो सुनने मे काफी आकर्षक लगता हैं। और बहुत सारे लोग उनको पढ़ते भी हैं। पर मैं नहीं जानता कि आप में से कितने लोग इस बात को समझ पाते है।
कि बाइबल में पवित्र आत्मा के फल कहीं पर लिखा ही नहीं हैं। बल्कि पवित्र आत्मा का फल हैं। ये एक वचन और बहु-वचन के बारे में तो आपको पता ही हैं। गलातियों 5:22- 23 पर आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, शान्ति, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, 23 नम्रता, और संयम है । यहाँ पर आप देखेंगे कि हिन्दी में एक वचन का उपयोग किया गया हैं। यहाँ पर आपको यूनानी या किसी दूसरी भाषा के ज्ञान कि जरूरत नहीं हैं
अब एक समस्या जो पैदा हो जाती है कि इसको समझ कैसे जाये। कि पवित्र आत्मा के फल कितने हैं यदि हम गिनती करते हैं तो 9 फल मिलते हैं। पर आप कह रहें है कि ये सिर्फ एक ही फल है। तो इसका एक सीधा सा उत्तर है कि बाइबल के बहुत सारे विद्वान मानते है कि पवित्र आत्मा का सिर्फ एक फल है और वो हैं प्रेम। बाकी सब उस प्रेम का नतीजा हैं।
यदि आपके पास परमेश्वर का प्रेम है तो आपके अंदर आनन्द, शान्ति, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम ये सब कुछ होगा और आपके जीवन से दूसरों को दिखाई देगा। इसको बाइबल के एक और पद से समझ सकते हैं।1 कुरिन्थियों 13 अध्याय पूरी तरह से प्रेम पर समर्पित हैं।
फलों के नाम गलतियों 5:22-23 | 1 कुरिन्थियों 13: 4-7 |
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प्रेम | प्रेम |
आनन्द | सत्य से आनन्दित |
शान्ति | झुँझलाता नहीं |
धीरज | प्रेम धीरजवन्त है |
कृपा | कृपालु है |
भलाई | प्रेम डाह नहीं करता |
विश्वास | सब बातों की प्रतीति करता है |
नम्रता | प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता |
संयम | सब बातों में धीरज धरता है/सब बातों की आशा रखता है |
इस चार्ट के द्वारा आपको बहुत कुछ समझ में आ गया होगा कि कैसे पवित्र आत्मा का फल प्रेम हैं और बाकी सब उसके साथ ही हैं। और ये सब पवित्र आत्मा के द्वारा आपको दिए जाते हैं । जब कोई व्यक्ति ये बोलता हैं कि उसके पास पवित्र आत्मा हैं और उसके अंदर प्रेम का फल नहीं है तो उसके विषय में आपको सचेत रहना हैं। क्योंकि हर कोई जो खुद को प्रभु का बताता हैं जरूरी नहीं के वो प्रभु का हो।
मैं उम्मीद करता हूँ कि सब तक आप पवित्र आत्मा के जो फल उनको समझ चूकें है कि बाइबल में सिर्फ एक ही फल है और वह प्रेम हैं। एक बात जो आपको याद रखनी है वो ये है कि ये सब पवित्र आत्मा के द्वारा आप को दिए जाते हैं। आप प्रेम के फल को खुद से प्राप्त नहीं कर सकते। जैसे आप पिछले लेखों में पढ़ चूकें हैं कि पवित्र आत्मा परमेश्वर हैं तो ये फल परमेश्वर के गुणों में से हैं।
यदि आप ने अभी तक परमेश्वर के गुणों का अध्ययन नहीं किया तो आप यहाँ पर टच करके पढ़ सकते हैं । और जैसे हम आत्मा के फल का शब्द अध्ययन करेंगे। आप को पता चलेगा कि कैसे सारे फल परमेश्वर के साथ जुड़े हुए हैं परंतु ये ज्यादा गहन नहीं होगा । ये सिर्फ आपके जीवन में सही शिक्षा की बुनियाद के लिए हैं
पवित्र आत्मा के फल: प्रेम
प्रेम, पवित्र आत्मा के फल का सबसे पहला और मुख्य फल हैं। बाइबल को यूनानी भाषा में लिखा गया है और प्रेम के लिए यूनानी भाषा के तीन शब्दों का उपयोग किया गया हैं। एरोसे (पति पत्नी का प्रेम), फिलिओ (दोस्तों का या भाई का प्रेम), आगापे (परमेश्वर का प्रेम, स्वार्थहीन प्रेम)। प्रेम के बारे में अगर आप सच में जानना चाहते है तो परमेश्वर के प्रेम से अच्छा कोई भी अध्ययन नहीं हैं. हमारे और परेश्वर के प्रेम में बहुत अंतर हैं।
हम भावना के आधार पर किसी को प्रेम करते हैं जबकि परमेश्वर का प्रेम काम से दिखाई देता हैं। यूहन्ना 3:16 को आप सब जानते है कि परमेश्वर का प्रेम कितना अद्भुत है। रोमियों 5:5 के द्वारा परमेश्वर का प्रेम हमारे अंदर डाला गया हैं यदि आप कहते है कि परमेश्वर का आत्मा या पवित्र आत्मा आप के अंदर हैं। तो परमेश्वर जैसा प्रेम आपके अंदर होना चाहिए।
1 यूहन्ना 3:16 हम ने प्रेम इसी से जाना कि उसने हमारे लिये अपने प्राण दे दिए; और हमें भी भाइयों के लिये प्राण देना चाहिए। जब पवित्र आत्मा के फल बारे आप कहते हैं तो परमेश्वर का ऐसा प्रेम आपके अंदर होना चाहिए। 1 यूहन्ना 3:18 हम वचन और जीभ ही से नहीं, पर काम और सत्य के द्वारा भी प्रेम करें। ये साफ साफ वचन की हिदायत हैं।
बाइबल के पद मत्ती 24:12, यूहन्ना 5:42, यूहन्ना 13:35, यूहन्ना 15:9-, यूहन्ना 15:12-13, यूहन्ना 17:26, रोमियों 5:5, रोमियों 5:8, रोमियों 8:35, रोमियों 8:39, रोमियों13:9-10, रोमियों 15:30, 1कुरि 4:21, 1कुरि 16:24, 2कुरि 2:4, 2कुरि 2:8, 2कुरि 5:14, 2कुरि 8:6-8, 2कुरि 8:24, 2कुरि 13:11, 2कुरि 13:14, गलातियों 5:6, गलातियों 5:13, गलातियों 5:22, इफिसियों 1:4, इफिसियों 1:15, इफिसियों 2:4, इफिसियों 3:17, इफिसियों 3:19, इफिसियों 4:2, इफिसियों.4:15-16 (2), इफिसियों.5:2, इफिसियों.6:23, फिलि.1:9, फिलि.1:17, फिलि.2:1-2 (2),
कुल 1:4, कुल 1:8, कुल 2:2, 1थिस्स.5:8, 1थिस्स.5:13, 2थिस्स.2:10, 2थिस्स.3:5, 1तिमों.1:14, 1तिमों.6:11, 2तिमों.1:7, 2तिमों.1:13, फिले.1:5, फिले.1:7, इब्रानीयों.6:10, इब्रानीयों.10:24, 1यूहना.2:5, 1यूहना.2:15, 1यूहना.3:1, 1यूहना.3:16-17 (2), 1यूहना.4:7-10 (4), 1यूहना.4:12, 1यूहना.4:16-18 (7), 1यूहना.5:3, 2यूहना.1:3, 2यूहना.1:6, यहूदा.1:2, यहूदा.1:21, प्रकाशित.2:4
पवित्र आत्मा के फल: आनन्द
पवित्र आत्मा के फल में आनंद मुझे व्यक्तिगत रूप से बहुत ही पसंद हैं परंतु आनंद और खुशी में बहुत अंतर है। खुशी अस्थाई तौर पर होती हैं। और वो एक भावना है जो किसी वस्तु के द्वारा हमको मिलती हैं, परंतु आनंद ऐसा नहीं हैं परमेश्वर का आनंद हमारे आत्मिक जीवन पर आधारित हैं। एक ऐसा व्यक्ति जो अपने आनंद को संसार में खोजता हैं। वह कभी भी खुश नहीं हो सकता।

क्योंकि एक उद्धार पाया हुया व्यक्ति कभी भी संसार में खुश में नहीं हो सकता हैं। क्योंकि एक उद्धार पाए हुए जन के आनंद का स्रोत परमेश्वर का वचन हैं भजन 1:2; रोमियों 15:13 में पौलुस कहता है कि आशा का परमेश्वर तुमको आनंद से भर दे। परंतु संसार की खुशी हमेशा के लिए नहीं होती बल्कि वह तो जीवन की परिस्थिति पर आधारित हैं। जबकि परमेश्वर का आनंद हमेशा के लिए हैं।
आप चाहे कितनी भी मुश्किलों से होकर गुजरे परमेश्वर का आनंद हमेशा बना रहता हैं। बाहर का कोई भी समस्या आपके अंदर के आनंद को छु भी नहीं सकती। तबही तो एक मसीही हमेशा परमेश्वर का धन्यवाद देता हैं याकूब 1:1-2****
मत्ती .2:10, मत्ती .13:20, मत्ती .13:44, मत्ती .25:21, मत्ती .25:23, मत्ती .28:8, लुका.1:14, लुका.2:10, लुका.8:13, लुका.10:17, लुका.15:7, लुका.15:10, लुका.24:41, लुका.24:52, यूहन्ना.3:29, यूहन्ना.15:11 (2), यूहन्ना.16:20-22 (3), यूहन्ना.16:24, यूहन्ना.17:13, प्रेरितों.8:8, प्रेरितों.13:52, प्रेरितों.15:3, प्रेरितों.20:24,
रोमियों.14:17, रोमियों.15:13, रोमियों.15:32, 2कुरि.1:24, 2कुरि.2:3, 2कुरि.7:13, 2कुरि.8:2, गलातियों.5:22, फिलि.1:4, फिलि.1:25, फिलि.2:2, फिलि.4:1, 1थिस्स.1:6, 1थिस्स.2:19-20 (2), 1थिस्स.3:9, 2तिमों.1:4, इब्रानीयों.12:2, इब्रानीयों.13:17, याकूब.1:2, याकूब.4:9, 1पतरस.1:8, 1यूहना.1:4, 2यूहना.1:12, 3यूहना.1:4
पवित्र आत्मा के फल: शान्ति
शांति, आज सबको शांति चाहिए। पर मिलती किसी को भी नहीं हैं। ये संसार परेशानियों से भरा हुया हैं। जब बाइबल शांति के बारे में बताती हैं तो कोई ध्यान के साथ बैठने वाले फल के बारे में नहीं हैं। बल्कि इसका अर्थ है परमेश्वर और दूसरे के साथ एक अच्छा रिश्ता। लेकिन हमारी बाइबल में शांति के लिए अलग अलग शब्दों का उपयोग किया है हैं। जैसे मेल मिलाप, शांति, इत्यादि।
ये सब संदर्भ के मुताबिक लगाए गये है ताकि आप सही रीति से समझ सकें। पौलुस रोमियों 8:6 में बताता है कि आत्मा पर मन लगाना जीवन और शान्ति है। हम सब पाप के अधीन थे और सब पर पाप के दण्ड था। परंतु यीशु यीशु मसीह के बलिदान के द्वारा हमारा परमेश्वर के साथ शांति स्थापित हुई हैं। अब जो यीशु मसीह पर विश्वास करते हैं उन पर अब परमेश्वर का क्रोध नहीं हैं। इसलिए परमेश्वर ने अपने आत्मा को हमें दिया हैं ताकि हम भी दूसरों के साथ मेल मिलाप या शांति के साथ रहें
मत्ती .10:13 (2), मरकुस.5:34 (3), लुका.1:79, लुका.2:14, लुका.2:29, लुका.7:50, लुका.8:48, लुका.10:5-6 (3), लुका.11:21, लुका.12:51, लुका.14:32, लुका.19:38, लुका.19:42, लुका.24:36, यूहन्ना.14:27 (2), यूहन्ना.16:33, यूहन्ना.20:19, यूहन्ना.20:21, यूहन्ना.20:26, प्रेरितों.10:36, प्रेरितों.12:20, प्रेरितों.15:33, प्रेरितों.16:36, रोमियों.1:7, रोमियों.2:10, रोमियों.3:17, रोमियों.5:1, रोमियों.8:6, रोमियों.10:15, रोमियों.14:17, रोमियों.14:19, रोमियों.15:13, रोमियों.15:33, रोमियों.16:20,
1कुरि.1:3, 1कुरि.7:15, 1कुरि.14:33, 1कुरि.16:11, 2कुरि.1:2, 2कुरि.13:11, गलातियों.1:3, गलातियों.5:22, गलातियों.6:16, इफिसियों.1:2, इफिसियों.2:14-15 (2), इफिसियों.2:17, इफिसियों.4:3, इफिसियों.6:15, इफिसियों.6:23, फिलि.1:2, फिलि.4:7, फिलि.4:9, कुल 1:2, कुल 3:15, 1थिस्स.1:1, 1थिस्स.5:3, 1थिस्स.5:23, 2थिस्स.1:2, 2थिस्स.3:16 (2), 1तिमों.1:2, 2तिमों.1:2, 2तिमों.2:22, तिमोंt.1:4, फिले.1:3, इब्रानीयों.7:2, इब्रानीयों.11:31, इब्रानीयों.12:14, इब्रानीयों.13:20, याकूब.2:16, याकूब.3:18 (2), 1पतरस.1:2, 1पतरस.3:11, 1पतरस.5:14, 2पतरस.1:2, 2पतरस.3:14, 2यूहना.1:3, 3यूहना.1:14, यहूदा.1:2, प्रकाशित.6:4 (2)
पवित्र आत्मा के फल: धीरज
धीरज को बाइबल में एक मसीही के जीवन बहुत ही मुख्य गुण करके बताया गया है। और मैं समझता हूँ कि इसकि आज बहुत सारे मसीही लोगों को जरूरत हैं। बाइबल में इस को और बहुत सारे शब्दों के साथ संबोधित किया गया है जो आपको ज्यादातर इंग्लिश बाइबल में मिलते हैं। पवित्र आत्मा एक विश्वासी को धीरज के भरता है ताकि वो संसार के हालातों को देख कर परेशान ना हो जाए।

जैसे बहुत सारे लोगों को बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता है पवित्र आत्मा उनको क्रोध के ऊपर अधिकार करने की सामर्थ देता हैं। उनके अंदर इतना प्रेम भर देता हैं कि वह सब बातों को दृढ़ हो कर सहते हैं। पौलुस इस शब्द के बारे में बताता है जब वह यीशु मसीह के धीरज को अपने संबंध में बताता हैं इफिसियों 4:1-2; 1तीमुथियुस 1:16
रोमियों.2:4 (2), रोमियों.9:22, 2कुरि.6:6, गलातियों.5:22, इफिसियों.4:2, कुल 3:11-12 (2), 1तिमों.1:16, 2तिमों.3:10, 2तिमों.4:2, 1पतरस.3:20, 2पतरस.3:15
पवित्र आत्मा के फल: कृपा
कृपा का यूनानी शब्द का अर्थ जो है वह एक व्यक्ति के नैतिक चरित्र, खराई, के बारे में बात करता हैं। इसके बारे में आप अच्छे से जानते ही हैं। कि कृपा करना क्या होता हैं। रोमियों 2:4 में पौलुस बताता है कि परमेश्वर की कृपा हमओ मन फिराव की ओर लेकर जाती हैं। और मन फिरना उद्धार की ओर लेकर जाता हैं। और जैसे जैसे एक विश्वसी परमेश्वर के वचन को पढ़ता जाता हैं। उसका अध्यन करता है उतना ही ज्यादा वह परमेश्वर की कृपा को समझता है कि कैसे परमेश्वर ने कृपा करके उसको उद्धार की तरफ लेकर आया हैं, तीतूस 3:4-7।
इस तरह से एक विश्वासी अपने अंदर पवित्र आत्मा के फल को अपने जीवन से दिखाता हैं जैसे पौलुस ने इफिसियों 4:32 में कहता है कि एक दूसरे पर कृपालु और करुणामय हो, और जैसे परमेश्वर ने मसीह में तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी एक दूसरे के अपराध क्षमा करो। इस तरह से आप उस कृपा जो परमेश्वर ने आप कि है दूसरों को अपने जीवन से दिखा सकते हैं।
रोमियों.2:3-4 (2), रोमियों.11:22 (3) 2कुरि.6:6, इफिसियों.2:7, कुल 3:12, तिमों.3:4 गलातियों.5:22 रोमियों.3:12
पवित्र आत्मा के फल: भलाई
भलाई हो है वह परमेश्वर का एक गुण हैं। जो परमेश्वर से ही आया हैं। इसका अर्थ ये है कि इसकी भी ना शुरुआत है और ना ही अंत हैं। निर्गमन 33:19 मसीही विश्वासियों को चाहिए कि वे परमेश्वर के इस गुण को अपने जीवन से दिखा सकें। बाइबल में विश्वासियों को हिदायतें दी गई हैं कि वे जो भला उसको पकड़े रहो गलातियों 6:21 और इसके साथ ही जो भला है उसको करें 1 थिस्सलुनीकियों 5:15।
रोमियों.15:14, गलातियों.5:22, इफिसियों.5:9, 2थिस्स.1:11
पवित्र आत्मा के फल: विश्वास
विश्वास भी पवित्र आत्मा के फल में से एक हैं और बाइबल इस में बहुत ही ज्यादा उपयोग किया हैं। बहुत बार विश्वशयोग्यता का उपयोग परमेश्वर की विश्वशयोग्ता के लिए किया गया हैं जैसा परमेश्वर हमारे प्रति विश्वासयोग्य हैं वैसे ही हमको उसके प्रति विश्वास योग्य रहना हैं। और उसका प्रतिफल हमको मसीह से मिलेगा। इस के विषय में यीशु मसीह ने एक दृष्टांत दिया था। जिसमें मालिक आपने सेवकों को कुछ चांदी देकर जाता है और जब वह वापिस आता है तब उनकी विश्वास योग्यता के मुताबिक उनको प्रतिफल देता हैं मत्ती 25:22-23
प्रति दिन के काम जो काम करते हैं। वो चाहे देखने में कुछ भी ना लगे परंतु परमेश्वर उन पर अपनी निगाह रखता हैं 2 थिस्सलुनीकियों 3:3****
मत्ती .8:10, मत्ती .9:2, मत्ती .9:22, मत्ती .9:29, मत्ती .15:28, मत्ती .21:20-21 (2), मत्ती .23:23, मरकुस.2:5, मरकुस.4:40, मरकुस.5:34, मरकुस.10:52, मरकुस.11:22, लुका.5:20, लुका.7:9, लुका.7:50, लुका.8:25, लुका.8:48, लुका.17:5-6 (2), लुका.17:19, लुका.18:8, लुका.18:42, लुका.22:32, प्रेरितों.3:16 (2), प्रेरितों.6:5, प्रेरितों.6:7-8 (2), प्रेरितों.11:24, प्रेरितों.14:8-9 (2), प्रेरितों.14:22, प्रेरितों.14:27, प्रेरितों.15:9, प्रेरितों.16:5, प्रेरितों.20:21, प्रेरितों.24:24, प्रेरितों.26:18,
रोमियों.1:5, रोमियों.1:8, रोमियों.1:12, रोमियों.1:17 (3), रोमियों.3:3, रोमियों.3:22, रोमियों.3:25, रोमियों.3:27-28 (2), रोमियों.3:30-31 (3), रोमियों.4:5, रोमियों.4:9, रोमियों.4:11-14 (4), रोमियों.4:16 (2), रोमियों.4:19-20 (2), रोमियों.5:1-2 (2), रोमियों.9:30, रोमियों.9:32, रोमियों.10:6, रोमियों.10:8, रोमियों.10:17, रोमियों.11:20, रोमियों.12:3, रोमियों.12:6, रोमियों.14:1, रोमियों.14:22-23 (3), रोमियों.16:26,
1कुरि.2:5, 1कुरि.12:9, 1कुरि.13:2, 1कुरि.15:13-14 (2), 1कुरि.15:17, 1कुरि.16:13, 2कुरि.1:24 (2), 2कुरि.4:13, 2कुरि.8:7 (2), 2कुरि.10:15, 2कुरि.13:5, गलातियों.1:23, गलातियों.2:16 (2), गलातियों.2:20, गलातियों 3 (14), गलातियों.5:6 (2), गलातियों.5:22, गलातियों.6:10, इफिसियों.1:15, इफिसियों.2:8, इफिसियों.3:12, इफिसियों.3:17, इफिसियों.4:5, इफिसियों.4:13, इफिसियों.6:16, इफिसियों.6:23, फिलि.1:25, फिलि.1:27, फिलि.2:17, फिलि.3:9 (2), कुल 1:4, कुल 1:23, कुल 2:5, कुल 2:7, कुल 2:12, 1थिस्स.1:3, 1थिस्स.1:8, 1थिस्स.3:2, 1थिस्स.3:5-7 (3), 1थिस्स.3:10, 1थिस्स.5:8, 2थिस्स.1:3-4 (2), 2थिस्स.1:11, 2थिस्स.3:2,
1तिमों.1:2, 1तिमों.1:4-5 (2), 1तिमों.1:14, 1तिमों.1:19 (2), 1तिमों.2:7, 1तिमों.2:15, 1तिमों.3:9, 1तिमों.3:13, 1तिमों.4:1, 1तिमों.4:6, 1तिमों.4:12, 1तिमों.5:8, 1तिमों.5:12, 1तिमों.6:10-12 (3), 1तिमों.6:21, 2तिमों.1:5, 2तिमों.1:13, 2तिमों.2:18, 2तिमों.2:22, 2तिमों.3:8, 2तिमों.3:10, 2तिमों.3:15, 2तिमों.4:7, तिमोंt.1:1, तिमोंt.1:4, तिमोंt.1:13, तिमोंt.2:2, तिमोंt.3:15, फिले.1:5-6 (2),
इब्रानीयों.4:2, इब्रानीयों.6:1, इब्रानीयों.6:12, इब्रानीयों.10:22, इब्रानीयों.10:38, इब्रानीयों 11 (24), इब्रानीयों.12:2, इब्रानीयों.13:7, याकूब.1:3, याकूब.1:6, याकूब.2:1, याकूब.2:5, याकूब.2:14 (2), याकूब.2:17-18 (4), याकूब.2:20, याकूब.2:22 (2), याकूब.2:24, याकूब.2:26, याकूब.5:15, 1पतरस.1:5, 1पतरस.1:7, 1पतरस.1:9, 1पतरस.1:21, 1पतरस.5:9, 2पतरस.1:1, 2पतरस.1:5, 1यूहना.5:4, यहूदा.1:3, यहूदा.1:20, प्रकाशित.2:13, प्रकाशित.2:19, प्रकाशित.13:10, प्रकाशित.14:12
पवित्र आत्मा के फल: नम्रता
नम्रता के विषय में ज्यादा बताने की जरूरत नहीं है क्योंकि हमारा प्रभु यीशु मसीह ही हमारेलिए नम्रता का सबसे बड़ा उधारण हैं। यीशु मसीह ने खुद कहा कि मुझ से सीखो क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूँ और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे मत्ती 11:29। यीशु मसीह ने सिर्फ विश्राम देने के लिए हीं नहीं बल्कि सीखने के लिए भी बुलाया हैं वो हैं नम्रता
और जब हम अपने विश्वास के प्रमाण को देते है तब भी हमें नम्रता के साथ बताना हैं। ताकि उन पर मसीह की नम्रता प्रगट हो 1 पतरस 3:15-16****
1कुरि.4:21, 2कुरि.10:1, गलातियों.5:23, इफिसियों.4:1-2 (2), कुल 3:12, 1तिमों.6:11, 2तिमों.2:25, तिमों.3:2
पवित्र आत्मा के फल: संयम
संयम करना बहुत ही मुश्किल हैं जैसे पाने गुस्से को कभी में करना, बहुत सारी गंदी आदतों को सही करने के लिए संयम की जरूरत पड़ती हैं ये हमारे लिए मुश्किल जान पड़ता है परंतु पवित्र आत्मा के फल में संयम हमें मिल हैं। पौलुस 2 तीमुथियुस 1:7 में कहता है कि परमेश्वर ने तुम्हें संयम की आत्मा दी हैं
प्रेरितों.24:25, गलातियों.5:23, 2 पतरस.1:6
निष्कर्ष
आप ने सीखा पवित्र आत्मा के फल में सिर्फ एक ही फल है। ये सब एक ही गुच्छे से हैं। और इन सब का स्रोत परमेश्वर ही हैं। पवित्र आत्मा आपकी सहायता करता है इन फलों को आपके जीवन से दिखाने के लिए। जैसे मैंने पहले कहा था कि ये लेख सिर्फ लिए एक आधार को तैयार करने के लिए है
ताकि पवित्र आत्मा के फल के विषय में आपको फिर कभी को दिक्कत ना को। और मैंने आको बाइबल के पद दे दिए हैं ताकि आप और अधिक गहन अध्ययन कर सकें। और परमेश्वर के साथ बढ़ सकें। पवित्र आत्मा के फल का एक विश्वासी के जीवन में होना बहुत ही जरूरी हैं ताकि वे इस संसार में परमेश्वर को खुश करने वाला जीवन जी सकें।
तो आज अवसर है कि आप भी परमेश्वर के आत्मा को अपने जीवन में काम करने दे। अपने पापों को परमेश्वर के पुत्र के सामने अंगीकार करे और यीशु मसीह को अपने उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करे। विश्वास करें कि यीशु मसीह का बलिदान के द्वारा ही आप अपने सारे पापों से क्षमाप्राप्त कर सकते हैं।
इस बात पर विश्वास करे कि यीशु मसीह मेरे ही पापों के लिए क्रूस पर कुर्बान हुया और कब्र में रखा गया। और परमेश्वर ने उसे मुरदों में से तीसरे दिन जीवित किया। ये ही परमेश्वर का प्रेम हैं जो आपको परमेश्वर के पास ले आता हैं
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