पवित्र आत्मा का फल प्रेम

हम पिछले लेखों में पवित्र आत्मा का फल क्या है पवित्र आत्मा के कितने फल हैं, इन सब के बारे में देख चुके हैं और यदि आपने अभी तक उन लेखों को नहीं पड़ा तो आप इन पर टच करके उन लेखों पर जाकर पढ़ सकते हैं नहीं तो आप मैन्यू पर जाकर भी उन लेखों को पढ़ सकते हैं ताकि आपको इस बात की समझ आ जाए कि पवित्र आत्मा का फल क्या है और पवित्र आत्मा के कितने फल है।
आज हम पवित्र आत्मा के जिस फल की बात करने जा रहे हैं या दूसरे शब्दों में कहा जाए कि आज हम पवित्र आत्मा के उस फल के विषय में सीखेंगे , जिसमें सारे फल सम्मिलित हो जाते हैं | जिस तरह से एक संतरे में 12 फांके होती हैं| परंतु हम उसे सिर्फ संतरा यानी के एक संतरा ही कहते हैं | उसी प्रकार से पवित्र आत्मा के फल है तो आज हम पवित्र आत्मा के फल: प्रेम के विषय में देखेंगे।
सबसे पहले यह जानना बेहद जरूरी है कि प्रेम क्या है? आजकल का प्रेम आपको व्हाट्सएप पर, फेसबुक पर, ऐतिहासिक इमारतों की दीवारों पर गुदा हुआ मिल ही जायेगा और बगीचों के पेड़ों पर बहुत अच्छे से मिलेगा|
लेकिन वह प्रेम नहीं है, वह सिर्फ एक भावना है। वास्तविक प्रेम क्या है वह हम परमेश्वर के वचन से समझेंगे।
परमेश्वर के वचन में प्रेम शब्द के लिए 4 शब्दों का इस्तेमाल किया गया है | लेकिन हमारे हिंदी भाषा में वह शब्द एक ही शब्द में अनुवाद हुआ हैं जिसको आप “प्रेम” शब्द से जानते ही है। परंतु यूनानी भाषा में 4 शब्दों का इस्तेमाल किया गया है।

वह 4 शब्द इस प्रकार से हैं अगापे, फिलियो, एरोस और स्टर्गे।
अगापे प्रेम – वह प्रेम है जो परमेश्वर ने किया और यह स्वार्थ हीन प्रेम है|
फिलियो प्रेम – वह प्रेम है जो दो मित्रों के बीच में होता है|
एरोस प्रेम – वह प्रेम है जो पति पत्नी के बीच में होता है|
स्टर्गे प्रेम – वह प्रेम है जो माता-पिता और बच्चों के बीच में होता है|
तो इस तरह के शब्द “प्रेम” के लिए बाइबल में इस्तेमाल किए गए हैं | जो शब्द पवित्र आत्मा का फल प्रेम के लिए इस्तेमाल किया गया है वह अगापे हैं यानी के स्वार्थ हीन प्रेम।
अब जब आप ने प्रेम का अर्थ जान लिया है तो बहुत सारी बातें स्पष्ट हो चुकी हैं कि वास्तव में परमेश्वर का वचन पवित्र आत्मा का फल प्रेम के बारे में कहता है और वह कौन सा प्रेम है? जो हर एक विश्वासी के अंदर होना चाहिए। पवित्र आत्मा का फल प्रेम एक स्वार्थ ही प्रेम है।
प्रेम का स्रोत क्या है?
आपने अभी पवित्र आत्मा का फल प्रेम और उसके संबंध में जो शब्द बाइबल में इस्तेमाल किए गए हैं उनके विषय में सीखा है। परंतु सवाल यह है कि यह प्रेम आता कहाँ से हैं ? बाइबिल में जाने से पहले मैं आपको एक सच्चाई बताना चाहूंगा। यह पवित्र आत्मा का फल है तो जाहिर-सी बात है कि पवित्र आत्मा से ही आया हैं और पवित्र आत्मा परमेश्वर है। दूसरे शब्दों में इस तरह से कह सकते है कि यह प्रेम परमेश्वर का प्रेम है|
इसी बात को अब हम परमेश्वर के वचन से देखेंगे | यूहन्ना 5:42 और 1यूहन्ना 3:16 में इस प्रेम को परमेश्वर का प्रेम करके कहा गया है| अगापे प्रेम यानी के परमेश्वर का प्रेम। तो हम इस तरह से भी कह सकते हैं कि पवित्र आत्मा का फल प्रेम परमेश्वर का प्रेम है और यह परमेश्वर से आता है। इसकी खासियत ये है की ये हमारी और से शुरू नही होता हैं बल्कि परमेश्वर से शुरू होता हैं| इसलिए संसार की कोई भी बात, परिस्थिति और और कोई वस्तु परमेश्वर के प्रेम को हम पर प्रगट होने से नही रोक सकती हैं।
रोमियों 8:35 में आप पढ़ते हैं कि मसीह के प्रेम से हमें कोई भी अलग नहीं कर सकता। यहां पर अगापे प्रेम को मसीह का प्रेम करके बताया गया है। मसीह का प्रेम इतना दृढ़ है कि कोई भी बाहरी वस्तु इसे तोड़ नहीं सकती | क्योंकि यह हमारी ओर से परमेश्वर की तरफ नहीं बल्कि परमेश्वर की ओर से हमारी तरफ आता है | यह वास्तविक प्रेम हैं |जो परमेश्वर ने हमसे किया और हम पर जाहिर किया और चाहता है कि हम भी उसी तरह का प्रेम आपस में रखें।
यूहन्ना 15:13 में यीशु मसीह ने कहा, “इससे महान प्रेम कुछ नहीं कि कोई अपने मित्र के लिए प्राण दे|” और यीशु मसीह ने सिर्फ कहा ही नहीं बल्कि ऐसा करके भी दिखाया | अगापे प्रेम या परमेश्वर के प्रेम और मसीह के प्रेम को हम महान प्रेम भी कह सकते हैं। ऐसा महान प्रेम है जो परमेश्वर ने अपने लोगों पर जाहिर किया, संसार पर जाहिर किया कि उसने अपने एकलौते पुत्र को संसार में भेजा | वह संसार के पाप के कारण कलवारी के क्रूस पर कुर्बान हुआ था ताकि उनको जो पाप के अधीन है, आजाद करवा दें | यह अगापे प्रेम हैं स्वार्थ हीन प्रेम और इसी प्रेम को परमेश्वर का आत्मा हमारे अंदर देता है।
अगापे प्रेम कैसे प्राप्त करें?
अब तक अब तक हमने सीखा अगापे प्रेम क्या है? पवित्र आत्मा का फल प्रेम क्या है ? यह प्रेम आता कहां से हैं ? इन सब बातों को हम सीख चुके हैं? अब जो मुख्य बात है कि इस प्रेम को कैसे प्राप्त करें? अगर ऐसा प्रेम इस संसार में कोई करे तो सच में वह बहुत ही महान व्यक्ति होगा | लेकिन कोई भी व्यक्ति इस प्रेम को खुद प्राप्त नही कर सकता बल्कि यह प्रेम दिया जाता हैं| आप आगे इसको देखंगे।
परंतु सच्चाई यह है कि हम स्वार्थ से घिरे हुए हैं| हम परमेश्वर की आराधना भी अपने स्वार्थ के लिए करते हैं। बहुत सारे लोग परमेश्वर की आराधना इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें अपने बंधन तोड़ने हैं ना कि इसलिए कि परमेश्वर इस के योग्य है | इस तरह के बहुत बड़े फर्क को आज आप देख सकते हैं। आज इंसान को मनुष्य से ज्यादा जानवरों की, पेड़-पौधों की चिंता है। वह प्रेम गायब होता जा रहा है । परंतु परमेश्वर ने अपने लोगों के अंदर उस प्रेम को डाला है।
रोमियो 5:5 हमें बताता है परमेश्वर के आत्मा के द्वारा वह प्रेम (अगापे) हमारे अंदर डाला गया है| जिसके पास परमेश्वर का आत्मा है उस में परमेश्वर का प्रेम है| और वह जन परमेश्वर के प्रेम को जाहिर करेगा | जब आप यीशु मसीह को अपने उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करते हैं, जब आप अपने पापों की माफी यीशु मसीह से मांगते हैं, उसी क्षण परमेश्वर आपके पापों को माफ़ कर देता है| अपना आत्मा आपके अंदर देता है|
फिर वह आत्मा अपने फल यानी कि प्रेम को आपके अंदर डालता है। यदि आप चाहते हैं कि ऐसा प्रेम आपके अंदर भी हो तो सबसे पहले आपको अपने पापों से मन फिराना होगा। मसीह के बलिदान पर विश्वास करना होगा कि वह वास्तव में आप के लिए पापों के कारण कुर्बान हुआ। उसको आपके कारण कब्र में रखा गया और मुर्दों में से तीसरे दिन जी उठा ताकि आप धर्मी ठहरे।
हमारा क्या कर्तव्य हैं?
परमेश्वर का प्रेम क्या है? पवित्र आत्मा का फल प्रेम क्या है? अगापे प्रेम क्या है? किस तरह से यह प्रेम एक मसीही विश्वाशी के अंदर आता है, और कहां से आता है? इन सब बातों को आप सीख चुके हैं । अब सवाल यह है कि हम उस प्रेम के साथ क्या करें? या वह प्रेम हमारे साथ क्या करता है?
गलातियों 5:13 हमें प्रेम के साथ एक दूसरे की सेवा करनी है। आज संसार में सब लोग अपने स्वार्थ की खोज में है| परंतु जिनके अंदर परमेश्वर का पवित्र आत्मा है वह परमेश्वर के लोगों की और दूसरे लोगों को चिंता करते हैं। वे परमेश्वर के अगापे प्रेम को जो परमेश्वर ने उनके अंदर डाला है, इस दुनिया में जाहिर करते हैं । वास्तव में इस बात को प्रकट करते हैं कि परमेश्वर का प्रेम कैसा है।
1 पतरस 4:8 में पतरस कहता है कि प्रेम बहुत पापों को उठा देता है। यह प्रेम वह नहीं जो इस बात की आशा रखे कि उसको बदले में कुछ मिलेगा। परमेश्वर ने हम से प्रेम इसलिए नहीं किया; कि हम परमेश्वर को बदले में कुछ दे सकते हैं। उसी रीति से ऐसा प्रेम हमें रखना है।
जिस तरह से परमेश्वर ने आपको और मुझे क्षमा किया वैसे ही हमें दूसरों को भी क्षमा करना है| उन्हें जो पाप के मार्ग पर हैं उनको सीधे मार्ग पर लेकर आना है| ना कि उन्हें हमेशा उनके गलत कामों के कारण टोंट मारते रहे| बल्कि ने सही मार्ग दिखा कर उस प्रेम को जाहिर करना है। जिस तरह से युहन्ना अपनी पहली पत्री में कहता है 1 युहन्ना 3:18 कि हम शब्द से नहीं परंतु सत्य और कामों से भी प्रेम करें। बहुत से लोग कहते हैं कि हम प्रेम करते हैं परंतु उनके काम इस बात की गवाही नहीं देते |
अब हम बात करते हैं परिवारिक जीवन के लिए। इफिसियों 5:25 की पत्री में पौलुस कहता है | जैसा मसीह ने कलीसिया से प्रेम किया । वैसे ही तुम भी अपनी पत्नी से प्रेम करो |और मसीह ने ऐसा प्रेम किया कि उसने अपने आपको कलीसिया के लिए दे दिया ।अब इसी तरह से पतियों को अपनी पत्नी से अगापे प्रेम करना है ना की पत्नियों के साथ लड़ाई झगड़े करने हैं । जिस तरह से मसीह ने आप से प्रेम किया ठीक वैसे ही पतियों को अपनी पत्नी से प्रेम करना है।
प्रेम के प्रति सावधानियां।
अगापे प्रेम के बारे में लगभग मुख्य बातों को देखने के बाद कुछ ऐसी चेतावनिया भी बाइबिल में हमें दी गई हैं। जो अगापे प्रेम के साथ तालुकात रखते हैं । इफिसियों की कलीसिया के बारे में हम जानते हैं कि एक ऐसी कलीसिया थी जिसमें परमेश्वर के महान लोगों ने कार्य किया था। लेकिन प्रकाशितवाक्य 2:4 में पढ़ते हैं तो वहां पर प्रभु यीशु मसीह ने कहा, “कि तूने अपना पहला-सा प्रेम छोड़ दिया है। परमेश्वर ने प्रेम को नही छोड़ा परन्तु विश्वशियों ने इस प्रेम को छोड़ दिया हैं।
ऐसे लोग आज के समय में परमेश्वर से प्रेम नहीं करेंगे, बल्कि संसार की वस्तुओं को अधिक प्रिय जानेंगे। परमेश्वर की ओर से प्रेम का प्रभाव बंद नहीं होता बल्कि हमारी ओर से परमेश्वर के प्रति और दूसरे लोगों पर दिखाई देना बंद हो जाता है। अगापे प्रेम संसार की वस्तुओं पर आधारित नहीं होता। बल्कि संपूर्ण रीति से परमेश्वर पर निर्भर है और परमेश्वर से ही आता है।
मत्ती 24:12 में पढ़ते हैं अधर्म के बढ़ने से बहुतों का प्रेम ठंडा हो जाएगा । आज हम सब अंतिम दिनों में है, प्रेम तो बहुत है परंतु परमेश्वर के साथ किसी को प्रेम नहीं। अगर कोई व्यक्ति परमेश्वर की आराधना करता है; प्रार्थना करता है, उसके कलाम को पढ़ता है। तो सिर्फ इसलिए कि उसका कोई काम बन जाए। ना कि इसलिए कि वह परमेश्वर को प्रेम करता है | आज बहुत सारे मसीही इसी पैटर्न पर चल रहे हैं | कहीं आप उनमें से तो नहीं है ? क्या आप परमेश्वर के वचन को इसलिए तो नही पढ़ते हैं कि आपको परमेश्वर से कोई काम है या सिर्फ ज्ञान के लिए, यह दूसरों को ताना मारने के लिए |
परमेश्वर के प्रति हमारा प्रेम हमारे जीवन से जाहिर होता है और अभी शुरुआत है जैसे-जैसे अधर्म बढ़ता जाएगा परमेश्वर के प्रति लोगों का प्रेम ठंडा पड़ जाएगा | संसार में तो बहुत प्रेम दिखाई देता हैं, परंतु परमेश्वर के प्रति बहुत कम हैं।
पवित्र आत्मा का फल प्रेम जिसे आज हमने सीखा है मैं आशा करता हूं कि आपको अच्छे से समझ में आया होगा। आज से आप अपने जीवन में प्रेम को और ज्यादा प्रेम करेंगे । और अपने आस-पड़ोस पर उस प्रेम को जाहिर करेंगे| जैसा परमेश्वर ने आपसे रखा। क्योंकि परमेश्वर का वचन कहता हैं की लोग तुम्हारे भले कामों को देखकर, तुम्हारे परमेश्वर की जो आसमान में है बड़ाई करेंगे। यह प्रेम हमारे लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए है और परमेश्वर की ओर से है | ताकि सिर्फ और सिर्फ परमेश्वर के नाम की ही बढ़ाई हो।