क्रिसमस का महत्व और इसकी वास्तविकता
आजकल लोग बड़े हर्ष और उल्लास के साथ क्रिसमस मनाते हैं। यह त्योहार पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है और अधिकतर लोग इस बात पर विश्वास करते हैं कि 25 दिसंबर के दिन ईसाइयों के परमेश्वर यीशु मसीह का जन्म हुआ था। हालांकि, आज के समय में यह त्योहार केवल ईसाईयों द्वारा ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया द्वारा बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

मन में उठने वाले सवाल
एक विश्वासी होने के नाते हमारे मन में यह सवाल अक्सर आता है कि क्या हमें वास्तव में क्रिसमस मनाना चाहिए या नहीं? क्या सचमुच क्रिसमस के दिन प्रभु यीशु का जन्म हुआ था? और क्या सचमुच प्रभु यीशु मसीह इस जगत में आए थे? इन प्रश्नों के उत्तर के लिए हमें कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों पर नजर डालनी चाहिए।
क्रिसमस का बाइबल से संबंध
क्या क्रिसमस बाइबल के अनुसार है? एक उद्धार पाया हुआ विश्वासी होने के नाते हम जिस भी बात को मानते हैं या जिस भी बात पर विश्वास करते हैं, उनकी नींव परमेश्वर का वाचन, यानी पवित्र बाइबल है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कितने लोग क्रिसमस मना रहे हैं या कितने लोग नहीं मना रहे हैं। अगर बाइबल में क्रिसमस का कोई ज़िक्र है या नहीं, तो उसी के मुताबिक हमें अपने जीवन में इन चीजों को अपनाना चाहिए।
बाइबल में क्रिसमस का ज़िक्र
अब बात करते हैं कि क्या बाइबल में क्रिसमस के विषय में कोई जानकारी दी गई है। यदि हम स्पष्ट रूप से देखें तो हमें इस तरह का कोई ज़िक्र नहीं मिलता कि प्रभु ने या प्रभु ईशु मसीह ने अपने जन्मदिन मनाने की आज्ञा दी हो, या फिर प्रभु के चेलों ने प्रभु के जाने के बाद उनके जन्मदिन को मनाया हो। इस प्रकार की कोई घटना हमें बाइबल में नहीं मिलती और आज के समय में जो घटनाएँ बताई जाती हैं, उनका भी क्रिसमस से कोई संबंध नहीं है।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण
ईसाई धर्म के प्रारंभिक लेखकों जैसे इरेनिअस (c. 130–200), टरटूलियन (c. 160–225) और सिकंदरिया का ओरेगन (c. 165–264) ने अपने पत्रियों में रोमी त्योहारों का मज़ाक बनाया था, जो इस बात का पक्का सबूत है कि क्रिसमस या 25 दिसंबर को यीशु मसीह का जन्म नहीं हुआ था। इरेनिअस के लेखन (सी. 130-200) और टर्टुलियन के लेखन (सी. 160-225) से यह स्पष्ट होता है कि प्रारंभिक ईसाईयों ने रोमन उत्सवों को स्वीकार नहीं किया था, और ओरिजन का यह दृष्टिकोण था कि जन्मदिन मनाना गैर-ईसाई प्रथा थी (विश्लेषण और संदर्भ: Irenaeus, Against Heresies; Tertullian, On Idolatry; Origen, Homilies on Leviticus).
क्रिसमस का वास्तविक कारण
तो आपके मन में सवाल होगा कि जब क्रिसमस प्रभु यीशु मसीह का जन्मदिन नहीं है तो फिर इसे क्यों मनाया जाता है?
ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाए तो, 25 दिसंबर को सर्दियों की संक्रांति के साथ मेल खाने के लिए चुना गया था, और यह तारीख सर्दियों की लंबी रातों और दिन के कम समय को समाप्त करने का प्रतीक थी। प्रारंभिक ईसाईयों ने इस समय को प्रभु यीशु मसीह के जन्मदिन के रूप में मनाने का चयन किया, जिससे उनकी विश्वास की नई रोशनी प्रतीक हो।
जैसे-जैसे समय बीतता गया, विभिन्न संस्कृतियाँ और परंपराएँ क्रिसमस में जुड़ती गईं, जिसमें सांता क्लॉज़, क्रिसमस वृक्ष, और विभिन्न उपहार देने की परंपराएँ शामिल हैं। यह सब मिलकर क्रिसमस को एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक त्योहार बनाते हैं।
संदर्भ
- Irenaeus, Against Heresies.
- Tertullian, On Idolatry.
- Origen, Homilies on Leviticus.
इन स्रोतों के अनुसार, प्रारंभिक ईसाईयों ने यीशु मसीह के जन्मदिन को मनाने की कोई प्रथा नहीं रखी थी, और क्रिसमस को 25 दिसंबर को मनाने की परंपरा का ऐतिहासिक आधार रोमन और पगान त्योहारों से लिया गया था।
क्रिसमस की शुरुआत कैसे हुई?

क्रिसमस की शुरुआत के बारे में जानने से पहले हमें इसका इतिहास जानना ज़रूरी है। 25 दिसंबर को ही क्रिसमस क्यों मनाया जाता है? 26 को क्यों नहीं या उससे पहले क्यों नहीं? इसके पीछे इतिहास के पन्नों में कुछ घटनाएँ छिपी हैं, जिनका आपको और मुझे पता होना अनिवार्य है।
जब यीशु मसीह का जन्म हुआ, उस समय इज़राइल रोमी साम्राज्य की गुलामी में था। आज अक्सर लोग कहते हैं कि यीशु अंग्रेज़ों का गुरु है, परंतु ऐसा बिल्कुल भी नहीं था। यीशु यहूदी थे और वे खुद गुलामी के समय में पैदा हुए थे, जैसे कि हमारा भारत देश दो सौ साल तक अंग्रेज़ों की गुलामी में रहा है।
यीशु मसीह की शिक्षाएँ और सताव
यीशु मसीह ने जो भी बातें सिखाईं, जो भी अपने चेलों को बताया, वह सब प्रभु के चेलों ने और लोगों को बताया। लेकिन उस समय प्रभु के चेलों पर धार्मिक प्रधानों के द्वारा इतना सताव हो रहा था कि उनको क्रूस पर लटका दिया जाता, जेल में डाल दिया जाता, उबलते हुए तेल में डाल दिया जाता, पत्थरवाह कर दिया जाता या फिर जिंदा जला दिया जाता। लगभग 250 सालों तक यीशु के मानने वालों के साथ ऐसा ही होता रहा।
उस समय कोई भी यीशु मसीह की शिक्षाओं को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था। अगर कोई तैयार करता भी, तो उसे मरने के लिए तैयार होना पड़ता। और यह सारा सताव रोमी साम्राज्य के द्वारा और उनके शासकों द्वारा किया जाता था।
कांस्टेंटाइन और मसीही समाज में बदलाव
एक रोमी शासक जिसका नाम कान्सटनटाईन (Constantine) था, वह हुकूमत कर रहा था। कान्सटनटाईन की वजह से ही मसीही समाज में इतना बड़ा बदलाव आया। कान्सटनटाईन ने मसीही समाज को सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया और ईसाई धर्म को रोमन साम्राज्य का मुख्य धर्म बना दिया। इसके बाद, मसीहियों पर अत्याचार कम हुआ और ईसाई धर्म को मान्यता मिली।
जब कान्सटनटाईन ने सार्वजनिक रूप से ईसाई धर्म को स्वीकार किया, इसका क्रिसमस के साथ गहरा संबंध था। कान्सटनटाईन एक रोमन सम्राट था, जिसने मल्वियन ब्रिज की लड़ाई लड़ी, जिसने मसीही समाज के इतिहास को बदल दिया।
इतिहासकार यूसेबिउस ने कान्सटनटाईन के जीवन के बारे में “लाइफ ऑफ कान्सटनटाईन” नामक एक किताब लिखी। इसमें बताया गया कि लड़ाई से पहले, कान्सटनटाईन को एक दर्शन मिला। उन्होंने आकाश में एक चमकता हुआ क्रूस देखा जिस पर यूनानी भाषा में लिखा था “इस चिन्ह में विजय”। कान्सटनटाईन इस बारे में अनिश्चित थे, लेकिन उसी रात उन्हें एक सपना आया जिसमें यीशु ने उन्हें बताया कि उन्हें इस चिन्ह का उपयोग अपने दुश्मनों के खिलाफ करना है।
कान्सटनटाईन की विजय
कान्सटनटाईन ने यह चिन्ह अपने सैनिकों की ढाल और वस्त्रों पर लगा दिया। लड़ाई में कान्सटनटाईन ने विजय प्राप्त की, जिससे उन पर गहरा प्रभाव पड़ा। यह विजय उनके लिए महत्वपूर्ण थी और इसने उन्हें ईसाई धर्म के प्रति समर्पित कर दिया।
एडिक्ट ऑफ मिलान
313 ईस्वी में, कान्सटनटाईन और (लिसिनिउस) ने मिलकर एक आदेश पत्र निकाला जिसे एडिक्ट ऑफ मिलान के नाम से जाना जाता है। इस आदेश ने रोमन साम्राज्य में ईसाई धर्म को मान्यता दी। कान्सटनटाईन खुद भी ईसाई बन गए। उन्होंने ईसाईयों के लिए कई कार्य किए, जिनमें से एक था ईसाई धर्म को रोमन साम्राज्य का मुख्य धर्म बनाना। इसके परिणामस्वरूप, ईसाईयों पर अत्याचार बहुत कम हो गया।
कान्सटनटाईन का योगदान
कान्सटनटाईन ने मसीही समाज के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए। उन्होंने ईसाईयों को धार्मिक स्वतंत्रता दी, चर्चों का निर्माण करवाया, और ईसाई धर्म को साम्राज्य का मुख्य धर्म बनाया। इसके चलते मसीही समाज में नई ऊर्जा और आत्मविश्वास आया।
कुल मिलाकर, कान्सटनटाईन का योगदान और उनकी विजय ने मसीही समाज के लिए एक नया युग शुरू किया और इसके साथ ही क्रिसमस का महत्व भी बढ़ गया।
25 दिसंबर को क्रिसमस कैसे बना?
रोमियों का एक बहुत ही प्रचलित और प्रसिद्ध त्योहार था सैटर्नालिया (Saturnalia), जो रोमी देवता सैटर्न (सूर्य देवता) को समर्पित था। इस त्योहार के दौरान लोग अपने घरों को सजाते थे और एक-दूसरे को मिठाइयाँ भेजते थे। साथ ही, रोमी साम्राज्य के लोग 25 दिसंबर को अजय सूर्य के पुनर्जन्म का त्योहार सोल इन्विक्टस (Sol Invictus) भी मनाते थे। यह त्योहार सर्दियों के लंबे समय के बाद गर्मियों की शुरुआत के रूप में मनाया जाता था। इंडो-ईरानियन देवता मिथ्रा (Mithra), जो प्रकाश के देवता माने जाते थे, उनका भी 25 दिसंबर को जश्न मनाया जाता था।
जब कान्सटनटाईन ने ईसाई धर्म को ग्रहण किया, उस समय 336 ईस्वी में 25 दिसंबर को रोमी सम्राट ने इन त्योहारों को बदलकर क्रिसमस कर दिया। क्योंकि बहुत सारे रोमी लोगों ने ईसाई धर्म को स्वीकार किया था, सम्राट ने इन सभी त्योहारों को क्रिसमस में तब्दील कर दिया। सिर्फ नाम बदला गया, और कुछ भी नहीं। इस प्रकार, 25 दिसंबर को क्रिसमस का दिन माना जाने लगा, यानी यीशु मसीह का जन्मदिन।
ऐतिहासिक संदर्भ और स्रोत
सैटर्नालिया (Saturnalia):1 यह प्राचीन रोम में एक प्रमुख त्योहार था, जिसे देवता सैटर्न को समर्पित किया गया था। इस दिन लोग अपने घरों को सजाते थे और एक-दूसरे को उपहार और मिठाइयाँ भेजते थे (स्रोत)।
सोल इन्विक्टस (Sol Invictus)2: यह त्योहार अजय सूर्य के पुनर्जन्म का प्रतीक था। इसे भी 25 दिसंबर को मनाया जाता था। इस दिन को सर्दियों के बाद गर्मियों की शुरुआत के रूप में देखा जाता था (स्रोत)।
मिथ्रा (Mithra)3: यह इंडो-ईरानियन देवता, प्रकाश के देवता माने जाते थे, और उनका भी 25 दिसंबर को जश्न मनाया जाता था (स्रोत)।
कान्सटनटाईन और क्रिसमस
कान्सटनटाईन (Constantine): 336 ईस्वी में, रोमी सम्राट कान्सटनटाईन ने ईसाई धर्म को ग्रहण किया और 25 दिसंबर को क्रिसमस के रूप में मान्यता दी। इसका मुख्य कारण यह था कि रोमी समाज के बहुत से लोगों ने ईसाई धर्म को स्वीकार कर लिया था और यह निर्णय उनके धार्मिक और सामाजिक सामंजस्य के लिए लिया गया था (स्रोत)।
यहूदी इतिहास
25 दिसंबर को बहुत बार यहूदी इतिहास के साथ भी जोड़ा जाता है। यहूदियों का एक पर्व है जिसे हनुक्का (Hanukkah) 4के नाम से जाना जाता है। इस पर्व का दूसरा नाम ज्योति या समर्पण का पर्व (यूहन्ना 10:22) भी है। हनुक्का सर्दियों में यहूदी कैलेंडर के अनुसार किस्लेव 25 को मनाया जाता है, जो हमारे कैलेंडर में दिसंबर 25 के आसपास आता है।
हनुक्का का पर्व यहूदियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिन यहूदी लोग उस दिन को याद करते हैं जब उनके मंदिर में आराधना फिर से शुरू हुई थी। हनुक्का का यह पर्व यहूदियों की धार्मिक स्वतंत्रता और उनके मंदिर की पुनः स्थापना का प्रतीक है। इस दिन यहूदी लोग अपने मंदिर में मोमबत्तियाँ जलाते हैं और इस पर्व को मनाते हैं (स्रोत)।
यीशु मसीह और हनुक्का
यीशु मसीह भी एक यहूदी थे, इसलिए 25 दिसंबर को यीशु मसीह के जन्म के उपलक्ष में चुनने का एक कारण यह भी हो सकता है कि यह दिन यहूदी इतिहास और धार्मिक पर्व के साथ मेल खाता है। हनुक्का का पर्व और क्रिसमस का समय एक ही अवधि में आने के कारण, यह संभव है कि ईसाई धर्म के प्रारंभिक दौर में 25 दिसंबर को यीशु मसीह के जन्म के दिन के रूप में चुना गया हो। इस प्रकार, यहूदी और ईसाई दोनों समुदायों के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को ध्यान में रखते हुए, यह दिन क्रिसमस के रूप में मान्यता प्राप्त कर गया (स्रोत)।
यीशु मसीह के जन्म की भविष्यवाणी
बाइबल में कई स्थानों पर यीशु मसीह के जन्म की भविष्यवाणियाँ की गई हैं। ये भविष्यवाणियाँ सैकड़ों साल पहले लिखी गईं और यीशु मसीह के जन्म, जीवन और उनके मिशन को दर्शाती हैं।
पुराना नियम में भविष्यवाणियाँ
यशायाह की भविष्यवाणी
यशायाह 7:14 में भविष्यवाणी की गई है, “इस कारण प्रभु आप ही तुम्हें एक चिन्ह देगा। देखो, एक कुँवारी गर्भवती होगी और एक पुत्र को जन्म देगी, और उसका नाम इम्मानुएल रखा जाएगा।” इस भविष्यवाणी का मतलब है कि एक कुँवारी महिला गर्भवती होगी और एक पुत्र को जन्म देगी, जिसका नाम इम्मानुएल (अर्थात् “परमेश्वर हमारे साथ”) रखा जाएगा। मरियम का यीशु मसीह को जन्म देना इस भविष्यवाणी का पूरा होना है (यशायाह 7:14)।
मीका की भविष्यवाणी
मीका 5:2 में लिखा है, “हे बेथलेहेम एप्राता, यद्यपि तू यहूदा के कुलों में छोटा है, तुझसे एक ऐसा पुरुष निकलेगा, जो इस्राएल का हाकिम होगा; और उसका उद्गम प्राचीनकाल से, अनादि दिनों से होता आया है।” इस भविष्यवाणी के अनुसार, मसीह का जन्म बेथलेहेम में होगा। यीशु मसीह का जन्म बेथलेहेम में हुआ, जो इस भविष्यवाणी का पूरा होना है (मीका 5:2)।
यशायाह की दूसरी भविष्यवाणी
यशायाह 9:6 में लिखा है, “क्योंकि हमारे लिये एक बालक उत्पन्न हुआ, हमें एक पुत्र दिया गया है; और प्रभुता उसके कंधे पर होगी, और उसका नाम अद्भुत युक्ति करने वाला, पराक्रमी ईश्वर, अनन्तकाल का पिता, और शान्ति का राजकुमार रखा जाएगा।” इस भविष्यवाणी का मतलब है कि मसीह एक बालक के रूप में जन्म लेंगे और उनकी प्रभुता अनंतकाल तक होगी (यशायाह 9:6)।
नया नियम में भविष्यवाणियों का पूरा होना
मरियम के पास स्वर्गदूत का आना
लूका 1:26-38 में लिखा है कि स्वर्गदूत जिब्राएल मरियम के पास आए और उन्हें बताया कि वह पवित्र आत्मा की शक्ति से गर्भवती होंगी और एक पुत्र को जन्म देंगी, जिसका नाम यीशु रखा जाएगा। यह घटना यशायाह की भविष्यवाणी का पूरा होना है (लूका 1:26-38)।
यूसुफ के पास स्वर्गदूत का आना
मत्ती 1:18-25 में लिखा है कि यूसुफ के पास स्वर्गदूत आकर उन्हें मरियम को अपने घर लाने की आज्ञा देते हैं और बताते हैं कि मरियम पवित्र आत्मा की ओर से गर्भवती हैं। यह घटना भी यशायाह की भविष्यवाणी का पूरा होना दर्शाती है (मत्ती 1:18-25)।
भविष्यवाणियों का महत्व
यीशु मसीह के जन्म की ये भविष्यवाणियाँ बाइबल के सत्यता और प्रभु यीशु मसीह के दिव्य उद्गम को प्रमाणित करती हैं। ये भविष्यवाणियाँ सैकड़ों साल पहले लिखी गईं और यीशु मसीह के जीवन में पूरी हुईं, जो हमें यह सिखाती हैं कि परमेश्वर की योजना हमेशा से निर्धारित थी और उसकी पूर्ति निश्चित है।
यीशु मसीह के जन्म की कहानी
क्रिसमस की कहानी को परमेश्वर के वचन में पवित्र आत्मा के द्वारा दर्ज किया गया है। प्रभु यीशु मसीह के जन्म के बारे में हमें चार सुसमाचारों में से दो, मत्ती और लुका रचित सुसमाचार में जानकारी मिलती है। हालांकि, प्रभु यीशु मसीह की मृत्यु और पुनरुत्थान के बारे में चारों सुसमाचारों और प्रेरित पौलुस की पत्रियों में विस्तार से लिखा गया है। बाइबल में प्रभु यीशु मसीह के जन्मदिन का कोई विशेष जिक्र नहीं मिलता है।
प्रभु मसीह के जन्म की तैयारी
प्रभु मसीह के जन्म से पहले, परमेश्वर ने समय को प्रभु यीशु मसीह के आगमन के लिए तैयार किया (गलतियों 4:4)। प्रभु यीशु मसीह के जन्म के बारे में उनकी माता मरियम को एक स्वर्गदूत, जिसका नाम जिब्राएल था, ने बताया। मरियम उस समय मंगनी हुई थी, लेकिन वह पूर्ण रीति से कुवारी थीं। जब मरियम को इस बात का पता चला, तो वह असमंजस में पड़ गईं, लेकिन स्वर्गदूत ने कहा कि यह सब परमेश्वर की इच्छा के मुताबिक है।
स्वर्गदूत जिब्राएल ने मरियम को बताया कि उनकी बहन इलीशिबा, जो बहुत समय से बांझ थीं, छः माह की गर्भवती हैं। यह मरियम के लिए एक चिन्ह था कि जैसा कहा गया है, वैसा ही होगा। मरियम जब अपनी बहन इलीशिबा के पास गईं, तो उन्होंने पाया कि वह सच में छः माह की गर्भवती थीं। इससे मरियम को पूर्ण विश्वास हो गया।
मरियम और यूसुफ
जब मरियम के मंगेतर यूसुफ को पता चला कि मरियम गर्भवती हैं, तो उन्होंने मरियम को शादी से पहले ही त्याग देने का फैसला किया। लेकिन परमेश्वर के स्वर्गदूत जिब्राएल ने सपने में आकर यूसुफ को बताया कि मरियम को अपने घर लाने से न डरें, क्योंकि वह पवित्र आत्मा की ओर से गर्भवती हैं। इस प्रकार प्रभु यीशु मसीह का जन्म हुआ था (मत्ती 1:18-25; लुका 1-2)।
यीशु ने जन्म क्यों लिया?
यीशु मसीह के जन्म लेने के पीछे भी एक बड़ा कारण है। सारी मानवता पाप के वश में पड़ी है। यीशु मसीह इसलिए आए कि हमें पापों से आजाद कर सकें, क्योंकि यीशु मसीह पापरहित हैं और केवल एक पापरहित व्यक्ति ही हमें पाप से मुक्त कर सकता है (1 पतरस 2:22-25; 1 युहन्ना 3:8)।
यीशु मसीह, जो स्वयं परमेश्वर हैं, मानव रूप धारण करके इस दुनिया में हमारे लिए आए। यीशु मसीह इस दुनिया में सेवा करवाने के लिए नहीं, बल्कि सेवा करने के लिए और बहुतों को पाप से छुड़ाने के लिए अपने प्राण देने के लिए आए थे (मरकुस 10:45)। आज, जो कोई भी इस बात पर विश्वास करता है कि यीशु मसीह ने हमारे पापों के कारण यह सब किया है और यीशु मसीह को अपने उद्धारकर्ता के रूप में ग्रहण करता है, वह उद्धार पाता है (रोमियों 10:9)।
प्रभु यीशु मसीह का योगदान
इस प्रकार, प्रभु यीशु मसीह का जन्म और उनका जीवन मानवता के उद्धार के लिए समर्पित था। उन्होंने हमें पापों से मुक्त करने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी, जिससे हम सभी को उद्धार मिल सके। क्रिसमस का पर्व हमें यीशु मसीह के इस महान कार्य की याद दिलाता है और हमें उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर प्रदान करता है।
क्या हमें क्रिसमस मनाना चाहिए?
यह अब एक बहुत बड़ा सवाल है कि क्या हमें क्रिसमस मनाना चाहिए या नहीं। आप शायद मेरे उत्तर से सहमत न हों और कई तर्क भी दें, लेकिन सच्चाई को नहीं बदल सकते। यदि आप क्रिसमस को मनाते हैं, तो यह न कहें कि यह प्रभु यीशु मसीह का जन्मदिन है। इसके बजाय, इस दिन आप सुसमाचार का प्रचार करें, लोगों को बताएं कि प्रभु यीशु मसीह के आने का उद्देश्य क्या है, और खाने-पीने में न लगे रहें।
जैसा कि मैंने पहले ही बताया है, बाइबल में कहीं भी यीशु मसीह के जन्म के बारे में नहीं बताया गया और न ही प्रभु के किसी चेले ने प्रभु यीशु मसीह का जन्मदिन मनाया। प्रभु ने हमें यह आज्ञा नहीं दी। बाइबल में जो आज्ञा दी गई है, वह प्रभु यीशु मसीह के मृत्यु और पुनरुत्थान को याद करना है, जो हमें वास्तव में करना भी चाहिए।
प्रभु यीशु मसीह के वचन का पालन
यह अब आप पर निर्भर है कि आप संसार की तरह चलना चाहते हैं या प्रभु यीशु मसीह के वचन के मुताबिक। बाइबल में स्पष्ट रूप से यीशु मसीह के जन्मदिन का कोई जिक्र नहीं है। प्रभु ने हमें अपने जन्मदिन को मनाने की आज्ञा नहीं दी है, बल्कि उनके मृत्यु और पुनरुत्थान को याद करने की आज्ञा दी है (लूका 22:19-20)।
यदि आप इस दिन सुसमाचार का प्रचार करते हैं और लोगों को प्रभु यीशु मसीह के आने का उद्देश्य बताते हैं, तो यह अधिक सार्थक होगा।
संक्षेप में
- बाइबल में यीशु का जन्मदिन नहीं: बाइबल में कहीं भी यीशु मसीह के जन्मदिन का जिक्र नहीं है।
- प्रभु की आज्ञा: प्रभु ने हमें अपने जन्मदिन को नहीं, बल्कि उनके मृत्यु और पुनरुत्थान को याद करने की आज्ञा दी है (1 कुरिन्थियों 11:23-26).
- सुसमाचार का प्रचार: क्रिसमस के दिन आप सुसमाचार का प्रचार करें और लोगों को प्रभु यीशु मसीह के आने का उद्देश्य बताएं।
निष्कर्ष
अंततः यह निर्णय आप पर निर्भर करता है कि आप संसार की रीति के अनुसार चलना चाहते हैं या प्रभु यीशु मसीह के वचन के अनुसार। सच्चाई को समझें और उसी के अनुसार अपने जीवन में अमल करें। प्रभु यीशु मसीह के वचन का पालन करें और उनके मृत्यु और पुनरुत्थान को याद करें, जो हमारे उद्धार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
Footnote
- https://www.britannica.com/topic/Saturnalia-Roman-festival ↩︎
- https://www.britannica.com/topic/Sol-Invictus ↩︎
- https://www.britannica.com/topic/Mithra ↩︎
- https://www.britannica.com/topic/Hanukkah ↩︎