परमेश्वर की बुद्धि

परमेश्वर की बुद्धि के बारे में हम पहले पवित्र शास्त्र से कुछ आयतों को देखेंगे ताकि हमें परमेश्वर की बुद्धि के बारे में हल्का सा आभास हो जाये। पमेश्वर ही बुद्धि का स्रोत है (नीतिवचन 2:6; दानिय्येल 2:20; याकूब 1:5)। परमेश्वर सर्व बुद्धिमान परमेश्वर है (अययूब 12:13; यशायाह 40:28; रोमियों 11:33; अययूब 9:1-4; 36:5; यशायाह 31:1-2) परमेश्वर की बुद्धि असीमित है (अययूब 36:5; भजन 147:5)। परमेश्वर की बुद्धि मनुष्य की बुद्धि से बहुत ऊपर है (यशायाह 55:8-9; अययूब 28:12-28; यिरमियाह 51:15-17)
मैं उम्मीद करता हूँ कि अभी आपको कुछ अंदाजा हो गया है कि परमेश्वर की बुद्धि के बारे में पवित्र वचन क्या कहता है।
एक परिचय-परमेश्वर की बुद्धि
आपको परमेश्वर की बुद्धि के बारे में मैंने हल्का सा बता दिया है ताकि आप ये जाने कि बुद्धि क्या हैं? बुद्धि एक ऐसा शब्द है जिसे हम ज्यादातर दूसरों को सिखाने के लिए उपयोग करते है। जब कोई कुछ गलत करता है या जब कोई कुछ समझ नहीं पाता है तब हम इस शब्द का उपयोग करते है “ क्या तुम को बुद्धि नहीं है ?” “ ऊपर वाले ने भेजा तो भेजा पर भेजते समय भेजा नहीं भेजा”
कुछ इस तरह के कटु वाक्यों का हम उपयोग करते है। पर क्या आप या मैं ऐसे शब्दों का उपयोग करते समय अपनी बुद्धि के इस्तेमाल करते है?जैसा कि मैंने बहुत बार कहा है कि हमारी बुद्धि सीमित है और हम परमेश्वर को पूरी तरह से नहीं समझ सकते। परमेश्वर को समझना तो बहुत दूर हम में से बहुत सारे गणित, विज्ञान, अर्थव्यवस्था, इत्यादि बहुत सारे विषय को नहीं समझ सकते।
इंसान होने के कारण हम इतने स्वार्थी हो चुके है कि हम सिर्फ खुद का ही भला देखते है और उसके लिए ही अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करते है। और जब कभी भी हम पर मुश्किल आती है तो हम सीधा परमेश्वर पर दोष लगाना शुरू कर देते है।हम बहुत बार सिर्फ ये सोचते है कि परमेश्वर को क्या पता मेरे साथ क्या हो रहा है? वो तो ऊपर है अगर परमेश्वर नीचे होता तो पता चलता कि मेरी क्या हालत है? परमेश्वर तो सिर्फ दूसरों की सुनता है।
इस तरह के बहुत सारी बातें हम लोग कहते रहते हैं। तो आज इस लेख में हम परमेश्वर की बुद्धि पर विचार करेंगे। और थोड़ा समझने का प्रयास करेंगे। जिससे आप परमेश्वर को परमेश्वर को कोसना बंद करेंगें।
बुद्धि क्या है ?
बुद्धि, कुछ लोग इस शब्द को इस तरह से परिभाषित करते हैं, बुद्धि का अर्थ है ये पता होना “कैसे”। बुद्धि ज्ञान पर निर्भर है। अक्सर बुद्धि और ज्ञान को एक साथ दर्ज किया गया है (यिरमियाह 10:12; लुका 1:17: रोमियों 11:33; 1 कुरिनथियों 1:24; 2:5; कुलुसियों 2:3; प्रकाशितवाक्य 5:12; 7:12). बिना किसी तथ्य ज्ञान के बुद्धि अस्तित्व में ही नहीं आ सकती।
उदहारण के तौर पर आप कोई इमारत बनाना चाहते है तो उससे पहले आपको सारे तथ्य पता होना चाहिये उसके बाद आप आपनी बुद्धि का उपयोग करते है। यह ऐसे ही काम करता हैं। परमेश्वर जो सर्व ज्ञानवान है वो सब जानने वाला परमेश्वर भी है। जिसको हम धर्मविज्ञान में “सर्वज्ञानी” भी कहते है। जिसमे हम परमेश्वर के असीम ज्ञान को देखते है।
परमेश्वर को सब कुछ का ज्ञान है। परमेश्वर जानता है कि मनुष्य के मन में क्या चल रहा है (यहेजकेल 11:5; लुका 5:21-22)। परमेश्वर वो भी जानता है जो होने वाला है, यहाँ तक कि परमेश्वर ये भी जानता है कि किसी भी परिस्थिति में क्या कुछ हो सकता है (1 शमूएल 23:10-12; 2 राजाओं 8:10).
एक बात जो हमे जानने की जरूरत है कि परमेश्वर अपने मकसद को पूरा करने के लिए कुछ भी बुरा नहीं कर सकता। परमेश्वर का सर्वज्ञानीहोना परमेश्वर की बुद्धि के साथ है। परमेश्वर की बुद्धि परमेश्वर को इस योग्य बनाती है कि परमेश्वर को पता हैं कि ये कैसे होगा (1 पतरस 2:9)। बुद्धि किसी भी बनाई गई योजना को पूरे और प्रभावी तरीके से होने में मदद करती है।
परमेश्वर ने यहोशु को इस्राइली लोगों की अगुवाई करने के लिए बुद्धि दी (व्यवस्थविवरण 34:9). सुलेमान ने बुद्धि मांगी और उसको बुद्धि और ज्ञान दिया गया जो लोगों के ऊपर राज्य करने के लिए जरूरी था ( 2 इतिहास 1:7-12)
ए. डब्लू. टोजर बुद्धि के बारे में कुछ इस तरह से लिखते है-
पवित्रशास्त्र में जब बुद्धि को परमेश्वर और अच्छे लोगों के लिए इस्तेमाल किया गया है तो हमेशा वो एक दृढ़ नैतिकता के साथ उलेख किया गया है। बुद्धि को एक शुद्ध, प्रेमी और अच्छे रूप में ग्रहण किया जाता है। दूसरी चीजों के बीच में बुद्धि एक ऐसा गुण है जो सब बातों का सही तौर पर अंत करती है। बुद्धि शुरुआत में ही अंत को देखती है इसलिए इसे अंदाजा लगाने की जरूरत नहीं है। बुद्धि सब कुछ बहुत ध्यान से परखती है और हर बात को सभी के साथ जोड कर देखती है। इसलिए बुद्धि पूरी सटीकता के साथ पूर्वनिधारित लक्ष्य को पूरा करने में सक्षम है।
ए. डब्लू. टोजर
परमेश्वर की बुद्धि और मनुष्य का पतन

आइये हम परमेश्वर की बुद्धि को मनुष्य के पतन से देखेंगे। आपने शायद ही पहले कभी मनुष्य के पतन से परमेश्वर की बुद्धि के बारे में सीखा होगा (उत्पति 2; 3; नीतिवचन 3)। जब हम उत्पति की किताब के तीसरे अध्याय से पढ़ते है तब हमे पता चलता है कि कैसे हव्वा ने उस भले और बुरे के ज्ञान के पेड़ को पहचाना।
उसने देखा की वो खाने के लिए “अच्छा” है और उस ने उन सब बातों पर विश्वास भी किया और ये भी विश्वास किया कि उस पेड़ का फल उसको बुद्धिमान बना देगा।
इसको थोड़ा ध्यान से समझने की जरूरत है कि जैसा हव्वा ने सोचा था वो वास्तविकता नहीं थी। हव्वा ने उस पेड़ को ऐसे देखा जैसा शैतान उसको दिखाना चाहता था क्योंकि वो भ्रमित हो चुकी थी ( 1 तीमुथियुस 2 ;13-15). उस पेड़ का फल खाने के लिए अच्छा नहीं था क्योंकि परमेश्वर ने उसको मना किया था। और ना ही वो उनको बुद्धि दे सकता था
क्योंकि वो बुद्धि का नहीं बल्कि भले और बुरे के ज्ञान का पेड़ था। उस पेड़ के फल को खाने के बाद आदम और हव्वा को सिर्फ भले और बुरे का ज्ञान मिला। बुद्धि “भले और बुरे” को जानना नहीं बल्कि बुरे से भले को जानना है।
जब आदम और हव्वा ने वो फल खाया तब उनको बुरे का ज्ञान आया। अब वे उस बुराई को अनुभव से जान गए थे। आगे क्या होता है कि आदम और हव्वा को भले और बुरे के बारे में कुछ नया अनुभव होता है। जो गलत था वो उनकी नजर में सही हो गया। जो बुरा था वो उनके लिए भला बन गया। उस मना किये गए पेड़ से फल खाने के बाद, जो अच्छा था अब वो देखने में बुरा लग रहा था।
जब परमेश्वर ने आदम और हव्वा को बनाया वो दोनों परमेश्वर की बाकी सृष्टि की तरह ही अच्छे थे। उनको बिना कपड़ों के बनाया गया था पर उनको शर्मिंदगी नहीं थी। क्योंकि उनकी बिना कपड़ों की अवस्था अच्छी थी जब तक वे उस मासूमियत की अवस्था में थे। पर जब उन्होंने उस पेड़ के फल को खा कर परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया, तब उनकी बिना कपड़ों वाली अवस्था उनके लिए बुरी बन गई और उनको एक दूसरे से शर्मिंदगी आने लगी। और उन्होंने ने अपने आप को ढकने का प्रयास किया। उनको बिना कपड़ों की अवस्था अब उनके लिए अच्छी नहीं बल्कि बुरी हो गई थी।
पाप करने से पहले वो परमेश्वर की मौजूदगी में खुश थे पर अब भाग रहे थे। क्यों? क्योंकि अब यह अच्छाई उनके लिए बुराई बन गई थी। अब उनको भले और बुरे का ज्ञान तो था पर वो अब अलग था। बुरा भला और भला बुरा चुका था। क्या शैतान दोषी नहीं था उस काम को करने के लिए जो परमेश्वर ने मना किया था? (यशायाह 5:20).
शैतान दोषी नहीं था उस काम को करवाने के लिए जो परमेश्वर मना किया था। शैतान ने हव्वा को ये भरोसा दिलाया। कि उस फल को खाने के बाद वो परमेश्वर के समान हो जाएंगे, और उनको भले और बुरे का ज्ञान हो जाएगा (उत्पति 3:5)। शैतान का पाप ये था कि वो भी परमेश्वर के समान अपने बल के द्वारा बनाना चाहता था (यशायाह 14:14)। अगर आप सही ढंग से देखे तो हव्वा का उदेश्य भी कुछ इसी तरह का दिखाई देता है।
परंतु सच्चाई ये थी उस भले और बुरे के ज्ञान के पेड़ का फल उसको परमेश्वर के जैसा नहीं बनाएगा पर उस फल को खाना परमेश्वर की आज्ञा का विरोध करना है। जो पाप है। परमेश्वर धर्मी है और कोई भी पाप करके उसके समान नहीं बन सकता। जैसा पौलुस हमे बताता है कि हव्वा बहकाई गई (1 तीमुथियुस 2:14).
तो क्या हव्वा का बुद्धि के लिए चाह करना गलत था? बिल्कुल भी नही। लेकिन अगर ज्ञान बुराई का ज्ञान है तो उसका ना होना ही एक बहुत बड़ी आशीष है। तो फिर क्या परमेश्वर आदम और हव्वा को अज्ञानता में रखना चाहता था? क्या परमेश्वर ने आदम और हव्वा को ज्ञानवान बनने से मना किया था? बिल्कुल भी नहीं।
परमेश्वर चाहता था कि वे बुद्धिमान बने।
परंतु परमेश्वर चाहता था कि उन का ज्ञान भला हो और वे बुराई से अज्ञान रहे। ऐसी ही शिक्षा हमे नये नियम में मिलती है (रोमियों 16:19)। शैतान को भले और बुरे का ज्ञान था। और जब आदम और हव्वा को बुराई का ज्ञान मिला तो वे भले के आनंद से बिल्कुल ही अलग हो गए। आदम और हव्वा को परमेश्वर ने पूरी आजादी थी कि वो परमेश्वर को जान सके, वो उसके जैसे हो, और उन सब बातों में जो भली हैं, बुद्धिवान बने। कुछ बातों को हम देखेंगे कि कैसे परमेश्वर ने इसको संभव किया था।
सृष्टि में परमेश्वर की बुद्धि हैं।
पहला- वो कुदरत को देख कर उसमें जो अच्छा है उससे बुद्धिवान हो सकते थे (भजन 104:24-26; 136:5; नीतिवचन 3:19-20; 8:22-31; यिरमियाह 10:12; 51:15-16)। अगर आदम और हव्वा को बुद्धिवान होने की चाह थी। तो उनको उस रचना का अध्ययन करना चाहिए था जिसका वो खुद भी एक हिस्सा थे। अगर वो सच में भला ही जानना चाहते थे वो इसको परमेश्वर की रचना से जान सकते थे (उत्पति 3:8)।
फिर जब उन्होंने ने परमेश्वर की आज्ञा को ना मानकर पाप किया , उसके बाद उन्होंने परमेश्वर की मौजूदगी से भी छिपना चाहा। अगर वो परमेश्वर की मौजूदगी में रहते तो वो कितना कुछ परमेश्वर से और परमेश्वर के बारे में सीख सकते थे। अगर आदम और हव्वा को सच में समझदार और बुद्धिमान बनना था तो परमेश्वर की आज्ञा को मानते। ऐसा ही हमे परमेश्वर का वचन सिखाता है (व्यवस्थविवरण 4:6; भजन 111:10)। परमेश्वर की बुद्धि और उसको समझने का जरिया सिर्फ परमेश्वर के वचन की आज्ञाकारिता में हैं।
बुद्धि से आज्ञाकारिता नहीं आती बल्कि आज्ञाकारिता से बुद्धि आती है।
शैतान ने हव्वा को बहकाया कि परमेश्वर की बुद्धि को प्राप्त करने के लिए आज्ञा ना मानना ही एक रास्ता है जबकि वो उसके उलट है। और वो आज भी ऐसा ही है। एक बात जो आपको याद रखनी है कि बुद्धि से आज्ञकारिता नहीं आती बल्कि आज्ञकारिता से बुद्धि आती ।
मसीही लोग परमेश्वर की आज्ञा को इसलिए नहीं मानते कि वे बहुत बुद्धिमान है, बिल्कुल भी नहीं। बल्कि उन्हे परमेश्वर में विश्वास है और परमेश्वर की बुद्धि पर जो परमेश्वर की आज्ञा से प्रगट होती है। अंत में आदम और हव्वा बुद्धिमान हो जाते अगर वो उस दूसरे पेड़ के फल को खाते। उत्पति 3 को नीतिवचन 3 बहुत अच्छे से समझा देता है।
बुद्धिमान होने के लिए क्या करना हैं?

लालसा
पहला, आपको उस बुद्धि की लालसा करनी चाहिए जो बहुत ऊंचे पर है (13-18)। परमेश्वर की बुद्धि की लालसा आपको करनी चाहिए। शैतान ने हव्वा की चाह को उलटी दिशा में लगा दिया। जो उसे नीचे की ओर यानि कि बुद्धि से मूर्खता और जीवन से मृत्यु की ओर लेकर चली गई। ।
मनन करना
दूसरा, हम पढ़ते है कि परमेश्वर की बुद्धि सृष्टि की शुरुआत से ही प्रगट है (19-20 )। आदम और हव्वा के सामने बुरी सृष्टि थी उनको परमेश्वर की बुद्धि के बारे में समझने के लिए। परमेश्वर ने अपनी बुद्धि को उनसे छिपाया नहीं था बल्कि उसको उनके सामने प्रगट किया था।
निस्वार्थ
तीसरा, बुद्धि आज्ञाकारित में बाधा नहीं है परंतु उसे परमेश्वर के प्रेम के रूप में देखती है (11-12)। हव्वा को इसके बिल्कुल उलट बताया गया। शैतान ने हव्वा को सुझाव दिया कि परमेश्वर स्वार्थी है इसलिए उसने तुमको उस पेड़ से फल खाने से मना किया है। और परमेश्वर नहीं चाहता की तुमको परमेश्वर की बुद्धि मिले।
आज्ञाकारित
चौथा बुद्धि आज्ञाकारिता की नतीजा है (1-2) शैतान ने हव्वा को मनाया कि उसकी आज्ञा ना मानने से उसको बुद्धि मिलेगी।
यीशु मसीह को ओर देखना
पाँचवा हमे बुद्धि को जीवन के पेड़ के समान देखना चाहिए (2,18)। यीशु मसीह ही जीवन हैं। और वचन में यीशु मसीह ने इसको बताया भी हैं।
आदम और हव्वा का पाप में गिरना हमारे लिए एक इतिहास की पुरानी घटना हो सकती है परंतु हमे झूठे दृष्टिकोण से भ्रमित नहीं होना है। हमारे पास हव्वा के जीवन से सीखने के लिए बहुत कुछ है। जिसको हम अपनी रोजाना के जीवन में लागू कर सकते है। जैसे पौलुस कहता है हम जो भला है उसको खोजने के लिए बुद्धिमान हो और जो बुरा है उससे हम अनजान बने रहे (रोमियों 16:19)। हमे अपना इच्छा को उन बातों की और लगाना चाहिए जो भली है और उस इच्छा को अनुशासित करना चाहिए जो नाश की और लेकर जाती है। (1 कुरिनथियों 10:6; 1 पतरस 2:11; भजन 42:1; 1 पतरस 2:1-2)
हमे परमेश्वर की बुद्धि की खोज करनी है, क्योंकि बहुत बार हम परमेश्वर की बुद्धि की खोज नहीं करते। हम इस बात से अनजान रह जाते है कि ऐसे भी बुद्धि है जिसको नकारने की जरूरत है (याकूब 3:13-18; 2 कुरिनथियों 1:12; कुलुससियों 2:23)।
तो आज अवसर है कि आप भी परमेश्वर की बुद्धि को अपने जीवन में काम करने दे। अपने पापों को परमेश्वर के पुत्र के सामने अंगीकार करे और यीशु मसीह को अपने उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करे। विश्वास करें कि यीशु मसीह का बलिदान के द्वारा ही आप अपने सारे पापों से क्षमा प्राप्त कर सकते हैं।
इस बात पर विश्वास करे कि यीशु मसीह मेरे ही पापों के लिए क्रूस पर कुर्बान हुया और कब्र में रखा गया। और परमेश्वर ने उसे मुरदों में से तीसरे दिन जीवित किया। ये ही परमेश्वर का प्रेम हैं जो आपको परमेश्वर के पास ले आता हैं
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