परमेश्वर की धार्मिकता क्या हैं ?
परमेश्वर की धार्मिकता के बारे में समझने से पहले ये समझना जरूरी है कि धार्मिकता क्या हैं?धार्मिकता के बारे में मनुष्य के स्तर पर बात की जाए तो इसका अर्थ, नैतिक और मौलिक तौर पर सही होना की योग्यता है। इस बात को हम मनुष्य के आधार पर धार्मिकता गिनते हैं।
लेकिन परमेश्वर की धार्मिकता की मनुष्य की धार्मिकता से बहुत ही अलग हैं। आइये हम देखे कि मनुष्य की धार्मिकता और परमेश्वर की धार्मिकता में क्या अंतर है ?
मनुष्य की धार्मिकता कैसी हैं?
मनुष्य की धार्मिकता में, हम आपने आप को अच्छा महसूस करवाने की कोशिश करते हैं। इसलिए आप सब अपने अंदर कही ना कही अच्छे काम करने की चाह रखते है। आप चाहते भी है कि आप अच्छे काम करे। परंतु कोई ना कोई ऐसी घटना हो जाती है जिससे आपका मन फिर किसी की भी भलाई करने की हिम्मत नहीं करता।
इसके बावजूद भी आप अपने आप को धर्मी बनाने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ते। बहुत से दूसरे तरीके भी आजमाते हैं कि आप लोगों की नजर में धर्मी बने रहे । जहां तक मैं जानता हूँ ये सब कुछ हम अपने स्वार्थ के लिए करते है।
आप चाहे कितना भी अच्छा कर ले लेकिन हम खुद को धर्मी नहीं बना सकते। अक्सर एक सवाल जो मेरे मन में आता है और मुझे लगता हैं कि आपके अंदर भी आता होगा। ‘कि मेरे अंदर धर्मी बनने की चाह कहा से आई?’ मैं क्यों अपने आप को हमेशा सही करने की कोशिश करता रहता हूँ? ऐसे बहुत सारे सवाल है जो हमको वापिस परमेश्वर की ओर ले जाते है।क्योंकि अगर मेरे अंदर धर्मी बनने की चाह है तो परमेश्वर से ही आई है। क्योंकि परमेश्वर की धार्मिकता के कारण ये गुण हमें मिला हैं उसने ही तो मुझे और आपको बनाया है। तो आज हम परमेश्वर के एक बहुत ही महत्वपूर्ण गुण यानि के परमेश्वर की धार्मिकता पर मनन करेंगे।

परमेश्वर की धार्मिकता क्या हैं?
परमेश्वर की धार्मिकता का अर्थ है कि परमेश्वर ही धार्मिकता का स्रोत है। परमेश्वर ने ही नियम और कानून बनाए हैं। इसलिए कोई भी परमेश्वर को किसी प्रकार से नहीं कह सकता कि परमेश्वर इतना धर्मी हैं। व्यक्ति अपने कर्मों के आधार पर परमेश्वर की उस धार्मिकता को प्राप्त नहीं कर सकता।
परमेश्वर की धार्मिकता, परमेश्वर के गुणों में से एक है जो हमको पवित्र शास्त्र में मिलते है। और परमेश्वर की धार्मिकता को परमेश्वर की पवित्रता से अलग करना असंभव है। क्योंकि जैसा मैंने पहले कहा था कि परमेश्वर के सारे गुण आपस में एक समान है हम उनको अलग नहीं कर सकते। एक तरह से परमेश्वर की धार्मिकता परमेश्वर के न्याय का दूसरा नाम है (भजन 97:2; भजन 9:8)। इसलिए आइये हम देखते हैं कि पवित्रशास्त्र में इसके बारे में क्या लिखा है।
बाइबल में परमेश्वर की धार्मिकता का अर्थ क्या हैं?
जब हम पुराने नियम में धर्मी शब्द को पढ़ते है तो उस धर्मी शब्द का अर्थ है “सीधा” और नए नियम में इस शब्द का अर्थ है “बराबर” नैतिक रूप से बोला जाए तो दोनों का मतलब एक ही आता है “सही”।
जब हम कहते है कि परमेश्वर धर्मी है तो इसको कहने का मतलब ये है कि परमेश्वर जो कुछ करता है वो सब कुछ करने में परमेश्वर बिल्कुल सही है (भजन 145:7)। और परमेश्वर ने वही किया है जो किया जाना चाहिए, वो भी बिना किसी पक्षपात के। तो जब आप कहते है कि परमेश्वर धर्मी है तो याद रखे कि आप का इस से क्या मतलब है। हम परमेश्वर पर किसी भी बात का दोष नहीं लगा सकते।
“परमेश्वर की धार्मिकता या न्याय परमेश्वर की पवित्रता का एक सामान्य भाव है, अगर परमेश्वर पूर्ण पवित्र है तो वह सारे पापों के खिलाफ है, और वो विरोधाभास तब दिखाई देता है जब परमेश्वर अपनी रचना से व्यवहार करता है, जब हम पढ़ते है परमेश्वर धर्मी और न्यायी है तो हमे इस बात का निश्चय होना चाहिए कि परमेश्वर के सारे कार्य हमारे प्रति उसके स्वभाव की सहमति के साथ है ना कि उसके विरोध में” -रिचर्ड एल.स्ट्रॉस
जैसे मैंने ऊपर कहा है। कि परमेश्वर को धार्मिकता के आधार पर नहीं आँका जा सकता, क्योंकि परमेश्वर धार्मिकता से नहीं बल्कि धार्मिकता परमेश्वर से है और परमेश्वर ही है जो धार्मिकता के मानक को ठहरता है। परमेश्वर जो भी करता है वह बिल्कुल सही करता है। बाइबल में बहुत सी ऐसी घटनाए है जिससे हम परमेश्वर की धार्मिकता के बारे में और अधिक गहराई से जन सकते है। आइए उन पर विचार करते है।

सादोम और अमोरा के विषय में परमेश्वर की धार्मिकता
बाइबल में हमे ऐसे उदहारण मिलते है जिससे हमे परमेश्वर की धार्मिकता के बारे में समझने का अवसर मिलता है। ये हमे बाइबल की पहली किताब उत्पति से ही मिलता है उत्पति 18:23-28. हम जो बाइबल पढ़ते है उन सबको ये घटना मालूम है।
जब परमेश्वर सदोम और अमोरा नाश करने के लिए आया था। तब अब्राहम परमेश्वर से प्रार्थना करता है। और मैं उम्मीद करता हूँ कि आपको ये घटना अच्छे से मालूम होगी। तो अब्राहम का सवाल जो वहां पर था कि क्या परमेश्वर सदोम और अमोरा में धर्मियों को भी अधर्मियों के साथ नाश कर देगा? परंतु हम देखते है कि ऐसा नहीं हुआ। परमेश्वर ने लूत को और उसके परिवार को बचाया। पतरस हमे बताता है कि लूत धर्मी मनुष्य था (2 पतरस 2:6-8)।
यहाँ पर हम परमेश्वर की धार्मिकता और उसके न्याय को एक साथ देख सकते है। जो परमेश्वर ने हमे वह पर सिखाया है। यहाँ पर ऐसी कोई भी शिक्षा नहीं है कि प्रार्थना परमेश्वर के मन को बदल सकती है। परमेश्वर सर्वज्ञानी है परमेश्वर को मालूम था कि अब्राहम क्या प्रार्थना करने जा रहा है। और दूसरी बात परमेश्वर ने सदोम और अमोरा का नाश किया परंतु धर्मी मनुष्य का नहीं।
इस भाग में हम परमेश्वर की धार्मिकता को देखते है कि कैसे परमेश्वर की धार्मिकता और न्याय एक साथ चलता है। हम से बहुत सारे लोग मसीह समाज में इस गलत फहमी में जीते है कि वो कुछ भी करे परमेश्वर हमेशा अच्छा ही करेगा। बल्कि ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं है। ऐसा होता तो फरीसी इन कामों में हमसे बहुत आगे थे। यीशु मसीह ने खुद कहा कि पहले परमेश्वर के धर्म और राज्य की खोज करो। परमेश्वर धर्मी है और वह धर्म के कामों से प्रेम रखता है (मत्ती 5:20; 6:33; भजन 11:7)।
इस्राइल के साथ परमेश्वर की धार्मिकता
अब जब हम इस्राइल के बारे में बात करते है या भले बुरे के ज्ञान के बारे में बात करते है कि परमेश्वर ने उनके साथ ऐसा क्यों किया? अगर हम परमेश्वर की सर्वज्ञानी गुण को अच्छे से जानते है तो ये सवाल हमारे जहन में नहीं आना चाहिए। पर फिर भी आता है तो इस में भी हमे परमेश्वर का धर्मी होना दिखाई देता है।
जब परमेश्वर ने इस्राइल को नियम या व्यवस्था दी थी तब परमेश्वर ने उनको बताया कि क्या करना है और ये उनके नाश के लिए नहीं भले के लिए थी (व्यवस्थविवरण 4:5-8; भजन 33:4). परमेश्वर लोगों के साथ उसी आधार पर व्यवहार करता है जो परमेश्वर ने मनुष्य पर प्रगट किए है।
अगर परमेश्वर ऐसा कुछ भी नहीं करता जो उसने बताया ना हो और फिर उसके मुताबिक न्याय करे।और जो परमेश्वर ने प्रगट नहीं किया उसे जानने की भी जरूरत नहीं है (व्यवस्थाविवरण 29:29)। परमेश्वर ने सब कुछ जो भक्ति और जीवन के लिए जरूरी है प्रगट कर दिया है (2 पतरस 1:4) इस तरह से परमेश्वर अपनी धार्मिकता को हम पर प्रगट करता है। परमेश्वर धर्मी है क्योंकि वह अपने वायदे को पूरा करता है (नहेम्याह 9:7-8)।
यीशु मसीह की धार्मिकता पर शिक्षा
प्रभु यीशु मसीह ने भी नए नियम की धार्मिकता पर शिक्षा दी है। प्रभु यीशु मसीह ने फरीसियों की धार्मिकता और अपने चेलों को सही धार्मिकता का अर्थ समझाया था। प्रभु ने बताया सच्ची धार्मिकता वह नहीं है जो मनुष्य बाहरी दिखावे को देख कर समझता है पर सच्ची धार्मिकता वह है जिसका आंकलन परमेश्वर उसके दिल को देख कर करता है (लुका 16:15)।
मत्ती 23 में हम पढ़ सकते है कैसे प्रभु ने फरीसियों के पाखंड को कोसा है। प्रभु ने इस से सावधान रहने की चेतावनी हमे दी है (मत्ती 6:1)। हम चाहे कितना भी अपने आप को परमेश्वर की धार्मिकता में लाने की कोशिश करें। लेकिन हम कभी भी उसको प्राप्त नहीं कर सकते।
क्योंकि पवित्रशास्त्र हमे बताता है कि कोई भी धर्मी नहीं है (रोमियों 3:23)। अब जब कोई धर्मी है ही नहीं, तो हमारे धर्म के काम कैसे धर्म वाले हो सकते है और वो कैसे हमे धर्मी ठहरा सकते है? हमारे धर्म के काम परमेश्वर की नजर में बहुत गंदे है (यशायाह 64:4)।

कौन धर्मी है?
सिर्फ यीशु मसीह ही धर्मी है। उनको छोड़ कर इस पृथ्वी पर न तो कोई धर्मी हुआ है और न ही होगा। यशायाह नबी ने भी आने वाले मसीह को धर्मी बताया था और उनके बारे में यह बताया था कि वह बहुतों को धर्मी बनाएगा (यशायाह 53:11) और यिर्मयाह नबी ने उन्हें एक धर्मी डाली के रूप मे बताया था (यिर्मयाह 23:5)। उसी तरह से जो लोग यीशु मसीह को क्रूस पर चढ़ा रहे थे उनके सूबेदार ने इस बात को स्वीकार किया कि यीशु मसीह एक धर्मी मनुष्य था (लुका 23:47) और प्रेरित भी इस बात की गवाही देते है कि यीशु मसीह धर्मी है।
आप को धार्मिकता कैसे प्राप्त होगी?
प्रेरित पौलुस हमे सिखाता है कि उद्धार या पापों की क्षमा में धार्मिकता का बहुत बड़ा भाग है। बिना पापों की क्षमा के हम कभी भी धर्मी नहीं ठहर सकते। पर यीशु मसीह पर विश्वास करने के द्वारा हम सब धर्मी ठहराये जाते है (रोमियों 3:26)।
ऐसा क्यों है क्योंकि परमेश्वर धर्मी परमेश्वर है और पाप के कारण परमेश्वर का क्रोध भड़का हुआ था। पर जब यीशु मसीह ने कलवरी के क्रूस पर अपनी जान स्वयं दी उस समय परमेश्वर का क्रोध जो हम पर भड़का हुया था बिल्कुल शांत हो गया। परमेश्वर ने मनुष्य के पाप के दोष को कम नहीं किया और ना ही परमेश्वर ने अपनी धार्मिकता के स्तर को नीचे किया।
बल्कि परमेश्वर ने अपने धार्मिक क्रोध को पूर्ण रीति से अपने एकलौते बेटे पर उंडेल दिया। अब जो कोई भी यीशु मसीह पर विश्वास करता है वो धर्मी ठहराया जाता है और ये सिर्फ और सिर्फ यीशु मसीह पर विश्वास करने से प्राप्त होता है (2 कुरिनथियों 5:20-21)।
क्या हम अपने कामों के द्वारा धर्मी ठहर सकते है ?
बिल्कुल भी नही। बाइबल के अनुसार इस लेख को पढ़कर हम इस निष्कर्ष पर आते है कि हम कभी भी अपनें कामों के द्वारा धर्मी नही ठहर सकते। बहुत से लोग आज दुनिया में इस बात पर विश्वास करते है कि उनके कर्मो से ही उन्हें मोक्ष मिल सकता है। अगर यह बात सच है तो उस व्यक्ति का क्या जो कर्म ही नही कर सकता? उन लोगों का क्या जो विकलांग है? इस प्रकार से तो उन्हें कभी भी मोक्ष नही मिल सकता।
इसलिए हम अपने धर्म के कामों के द्वारा नही बल्कि यीशु मसीह पर विश्वास करने से धर्मी ठहरते है।तो आज अवसर है कि आपअपने पापों को परमेश्वर के पुत्र के सामने अंगीकार करे और यीशु मसीह को अपने उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करे। विश्वास करें कि यीशु मसीह के बलिदान के द्वारा ही आप अपने सारे पापों से क्षमा प्राप्त कर सकते हैं।
इस बात पर विश्वास करे कि यीशु मसीह मेरे ही पापों के लिए क्रूस पर कुर्बान हुया और कब्र में रखा गया। और परमेश्वर ने उसे मुरदों में से तीसरे दिन जीवित किया। क्योंकि सिर्फ यीशु मसीह का बलिदान ही हमे परमेश्वर की नज़र में धर्मी बनता है।इस लेख को आगे भी शेयर करें ताकि दूसरे मसीह भाई-बहन यीशु मसीह और परमेश्वर के बारे में जान सकें।