परमेश्वर का राज्य: एक परिचय

“राज्य” ये शब्द सुनते ही हमारे मन में एक साफ और स्पष्ट विचार जो आता हैं वह है एक राजा और उसका राज्य। अगर आपको नहीं पता तो अकबर और वीरबल की कहानियाँ तो हम सब जानते ही हैं। अकबर एक राजा था और हर जगह पर उसकी ही हकूमत चलती थी।“परमेश्वर के राज्य” को यूनानी में ‘बासिलैया’ और इब्रानी में ‘मल्कुथ’ कहा जाता है जिसका अर्थ “स्वर्ग का राज्य” है। तो इसी तरह से आज हम जिस के बारे में सीखेंगे वो है “परमेश्वर का राज्य“। परमेश्वर के राज्य को लेकर बहुत सारी बातें हैं और बहुत सारे लोग “परमेश्वर के राज्य” को लेकर बहुत ही उलझन में पड़े हुए हैं।
इसलिए मेरी यही कोशिश है कि आप आज “परमेश्वर के राज्य” के राज्य के बारे में अच्छे से जान सकें। और इस लेख में आपको अपने ज्यादातर सवालों के जबाव भी मिल जाएँगे । तो ये जाहिर सी बात है कि ये लेख थोड़ा-सा लंबा होगा। हम धीरे धीरे और अच्छे से सीखेंगे। सबसे पहले हमें ये जानना होगा कि “राज्य” का अर्थ क्या होता हैं? राज्य का अर्थ है “कि बहुत सारे लोग एक ही व्यक्ति के अधीन हो”।
जैसा बहुत बार हम लोग इस्तेमाल करतें हैं कि वो तो अपना ही राज चलता है। या तुम यहाँ के राजा नहीं हो। तो इस तरह से हम राज्य के बारे में तो अच्छे से जान गये हैं। अर्थात आपको पता है कि राज्य क्या होता है।अब बात आती हैं परमेश्वर के राज्य की। मोटे तौर पर कहा जाए तो परमेश्वर के राज्य का अर्थ हैं, ऐसा राज्य जहाँ पर बस परमेश्वर ही की हकूमत चलती हो। उसी को परमेश्वर का राज्य कहा जाएगा।
परमेश्वर का राज्य और स्वर्ग का राज्य
अब समय है कि हम इसकी गहराई तक जाएँ। अगर आप से किसी ने पूछ लिया, कि परमेश्वर के राज्य से आपका क्या मतलब हैं? तो आप क्या कहेंगे? अगर कुछ नहीं कह सकते तो ये लेख आपके लिए है और हर एक विश्वास करने वाले के लिए है। क्योंकि हम जो मसीह यीशु पर विश्वास करतें हैं परमेश्वर के राज्य की बाँट जोह रहें हैं।इसलिए हमको इसके बारे में पता होना जरूरी हैं।
तो मैं सबसे पहले एक बात को आपके सामने स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि “परमेश्वर का राज्य” और “स्वर्ग का राज्य” का अर्थ एक ही हैं। बहुत सारे इनको दोनों वाक्यांश (एक बात के लिए कई शब्दों को मिला कर बोलना) को लेकर अलग अलग प्रकार की शिक्षा बताते हैं। क्योंकि मत्ती ने स्वर्ग का राज्य का बहुत ज्यादा उपयोग किया हैं और मत्ती रचित सुसमाचार यहूदी भाइयों को लिखा गया था
इसलिए कुछ कहते हैं कि मत्ती हजार साल के राज्य के बारे में लिख रहा है जबकि दूसरे लेखक परमेश्वर के विश्वव्यापी (सारी दुनिया के) राज्य के बारे में लिख रहें हैं। लेकिन जब हम इनका अच्छे से अध्ययन करतें है तो हमको मिलता है कि ऐसा कुछ भी नहीं हैं।हम अभी बाइबल से इस बात को देखगें। यहूना बपतिस्मा देने वाले ने कहा कि मन फिराओ, क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट हैं (मत्ती 3:2)
फिर यीशु मसीह ने भी ऐसा ही प्रचार किया और कहा कि परमेश्वर का राज्य निकट हैं (मरकुस 1:16)। फिर जब यीशु मसीह धनवानों के विषय में कहते है जहाँ पर स्वर्ग का राज्य और परमेश्वर के राज्य दोनों का एक ही वचन में उपयोग किया हैं।
तब यीशु मसीह ने अपने चेलों से कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ कि धनवान का स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करना बहुत मुश्किल है” (मत्ती 19:23)। फिर उसी अगली आयत में यीशु मसीह ने कहा, “फिर तुम से कहता हूं, कि परमेश्वर के राज्य में धनवान के प्रवेश करने से ऊंट का सूई के नाके में से निकल जाना सहज है” (मत्ती 19:24) यहाँ पर यीशु मसीह ने खुद स्वर्ग का राज्य और परमेश्वर का राज्य का दोनों का उपयोग किया हैं।
इस से साफ पता चलता है कि स्वर्ग का राज्य और परमेश्वर का राज्य दोनों शब्द एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द हैं। मरकुस और लुका ने एक जैसे दृष्टनतों में परमेश्वर के राज्य का उपयोग किया हैं जबकि मत्ती ने स्वर्ग के राज्य का उपयोग किया हैं।
तुलना के लिए मत्ती 11:11-12 को लुका 7:28; मत्ती 3:11 को मरकुस 4:11; लुका 8:10; मत्ती 13:24 को मरकुस 4:26; मत्ती 13:31 को मरकुस 4:30 और लुका 13:18; मरकुस 13:33 को लुका 13:20; मत्ती 18:3 को मरकुस 10:14 और लुका 18:16; मत्ती 22:2 को लुका 13:29। इन सब जगहों पर मत्ती ने “स्वर्ग का राज्य” का उपयोग किया है जबकि मरकुस और लुका ने “परमेश्वर के राज्य” का उपयोग किया हैं। ये बात स्पष्ट है कि परमेश्वर का राज्य और स्वर्ग का राज्य एक ही बात को बताता हैं।
मत्ती ने स्वर्ग का राज्य का उपयोग क्यों किया?
हमनें पहले ही देख लिया हैं कि मत्ती ने भी एक ही जगह पर स्वर्ग का राज्य और परमेश्वर के राज्य का उपयोग किया हैं (मत्ती 19:23-24)। एक बात जो हमको यहाँ पर जानने की जरूरत है वो ये है कि एक भक्त यहूदी के द्वारा “स्वर्ग” शब्द परमेश्वर के स्थान पर उपयोग किया जाता है।क्योंकि स्वर्ग परमेश्वर का निवास है और तीसरी आज्ञा के टूटने के डर से (तू अपने परमेश्वर का नाम व्यर्थ ना लेना)।
भक्त यहूदी लोग यहोवा शब्द को सीधे ना लेते हुए स्वर्ग शब्द, यहोवा परमेश्वर के स्थान पर उपयोग करते थे। इस भाव को हम लुका 15:18, 21 में देख सकते हैं उड़ाऊ पुत्र के दृष्यन्त में वो उड़ाऊ पुत्र ने कहा कि “हे पिता, मैंने तेरे और स्वर्ग के विरोध में पाप किया हैं”।
परमेश्वर का राज्य को लेकर बहुत सारे विचार हैं जिनके बारे में पता होना बहुत जरूरी है। क्योंकि आज के समय में बहुत सारे ऐसे हैं जो ना जाने क्या क्या सीखा रहें हैं। अब हम उन सब के बारे में समझेंगे।
परमेश्वर के राज्य को लेकर अलग अलग दृष्टिकोण या विचार
राजनैतिक राज्य

इस दृष्टिकोण के अनुसार यीशु मसीह दाऊद के राज्य जैसा राज्य इस दुनिया में स्थापित करना चाहता था। मतलब कि ये राज्य जो है वो राजनैतिक स्वभाव का है और इस्राइली लोगों को रोमियों से आजाद करने पर केंद्रित हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जब इस्राइल रोमियों की गुलामी में था। तब बहुत सारे लोगों का ये मानना था कि यीशु मसीह उन्हें यानि के इस्राइलियों को रोमियो से आजाद करवा देगा।
बहुत सारे लोगों ने यीशु मसीह को कुछ ऐसे ही देखा था और वैसे ही व्यवहार भी किया था।उदाहरण के तौर पर, खजूरी रविवार को राजा की तरह आगमन (मरकुस 11:11); मंदिर की सफाई करते हुए वहाँ की राजनैतिक व्यवस्था को चुनौती देना (मरकुस 11:15-18); जेलोतेस (जो एक क्रांतिकारी समूह था) को अपना चेला बनाना (मरकुस 3:18)। ऐसी कुछ बातों को लेकर वो ऐसा मानते हैं और थे कि परमेश्वर का राज्य जो है वो एक राजनैतिक राज्य हैं।
परंतु इस परमेश्वर के राज्य को राजनैतिक राज्य के रूप मे समझना गलत हैं। जो सबूत इसको लेकर बताएँ जाते है उनको कुछ ज्यादा ही बढ़ा चढ़ा कर कहा गया हैं। एक चुंगी लेने वाले का प्रभु यीशु मसीह का चेला होना इस बात को नकारता है कि यीशु मसीह कोई क्रांतिकारी थे। क्योंकि यीशु मसीह के चेलों में एक चुंगी लेने वाले का होना जो रोमियों के पक्ष में हो और एक जेलोतेस का होना जिसको रोमियों और चुंगी लेने वालों दोनों से नफरत थी इस बात को साफ साफ नकार देता हैं ।
फिर जब यीशु मसीह ने ऐसा सिखाया है जो हमको परमेश्वर के राज्य की ऐसी व्याख्या करने से रोकती है। यीशु मसीह ने कहा, “धन्य हैं वे, जो मेल करानेवाले हैं”(मत्ती 5:9), “ जो कोई (रोमी सैनिक) तुझे कोस भर बेगार में ले जाए, तो उसके साथ दो कोस चला जा। (मत्ती 5:38-42); अपने शत्रुओं से प्रेम करों (मत्ती 5:43-47)। इस तरह की शिक्षा हमें परमेश्वर के राज्य को लेकर ऐसी व्याख्या करने से रोक देती है।
आत्मिक राज्य
परमेश्वर का राज्य या आत्मिक राज्य। जब उदार ईश्वरमीमांस (ऐसी धार्मिक शिक्षा जो बाइबल के अधिकार के अलावा किसी अन्य मानदंड के आधार पर धार्मिक जांच स्थापित करता हैं) इन्होंने परमेश्वर या स्वर्ग का राज्य को कुछ इस तरह से समझा जैसे परमेश्वर मनुष्य के दिलों पर राज्य करता हैं इस बात का साथ देने के लिए वे लुका 17:20-21 “परमेश्वर का राज्य तुम में है” इस आयत का उपयोग करतें हैं।
परंतु इस विचार के साथ कोई भी अंत के दिनों को किसी भी तरह से समझ नहीं सकता। उदार ईश्वर मीमांस एक लगातार होने वाली आत्मिक प्रगति और इंसानियत की अच्छाई की सम्पूर्णता पर निर्भर करती हैं।

इनका मानना है कि परमेश्वर के राज्य वाली बात को एक चिह्न के तौर पर समझते हैं। जो कि पढ़ने वाले को अपनी तरफ से बाइबल का कुछ भी अर्थ समझने के लिए उकसाती हैं। पर ये व्याख्या प्रभु ने जो अंतिम दिनों की शिक्षा दी थी उसको नकारने के लिए मौका देती हैं परंतु कोई भी प्रभु यीशु मसीह के अंतिम दिनों की शिक्षा को ऐसे ही खारिज नहीं कर सकता। बाइबल इसकी अनुमति नहीं देती हैं।
भविष्य का राज्य
इस बात को समझने के लिए हमें इस बात को समझना होगा कि यीशु मसीह कोई 19वी शताब्दी का उदारवादी नहीं बल्कि पहली सदी का एक यहूदी था। तो यीशु मसीह ने उसको बहुत बड़े दर्जे पर देखा था। यीशु मसीह के दिनों में परमेश्वर के राज्य को भविष्य में देखा था। एक ईश्वरीये राज्य को जो इस दुनिया के अंत में आएगा।
यीशु मसीह ने भी ऐसा ही सिखाया था ऐसा सोचना स्वभाविक हैं क्योंकि यीशु मसीह की शिक्षा उनके सुनने वालों ने समझ ली थी और उसको बदलने के लिए यीशु मसीह ने कभी भी कुछ नहीं किया। जिसका अर्थ ये हुआ कि परमेश्वर का राज्य या स्वर्ग का राज्य भविष्य में आना वाला राज्य है जिसके बारे में यीशु मसीह ने शिक्षा दी।
इस दृष्टिकोण के अनुसार, यीशु मसीह ने परमेश्वर के राज्य के बारे में सिखाया था। वो भविष्य के बारे में जो सब कुछ हो उसकी सम्पूर्णता में ले आएगा। जबकि ये भविष्य में ज्यादा दूर नहीं हैं। बल्कि इसके विपरीत, ये बहुत नजदीक हैं। ये अभी तक आया नहीं था, परंतु ये क्षण भर में प्रगट होने वाला था।राज्य के चिन्ह और सामर्थ पहले से ही काम कर रहे थे।
उसकी महिमा का हल्का सा अंश पहले से ही मौजूद था। बहुत ही जल्द मनुष्य का पुत्र प्रगट होगा और अंतिम न्याय होगा और संसार का जैसा कि हम जानते है, अंत हो जाएगा। इस समय के दौरान विश्वासियों को एक बहुत हीअच्छा नैतिक जीवन जीना था।
जैसा कि बाइबल में पढ़ते है कि बहुतों ने सिखाना शुरू कर दिया था। उन्हें तलाक देने से रोकना, शत्रुओं से प्रेम करना, ऐसी बहुत सारी बातें। ये तो बहुत ही स्पष्ट है कि इस व्याख्या को बहुत ही ज्यादा गंभीरता से लिया गया। कि यीशु मसीह ने जब परमेश्वर के राज्य के बारे में सिखाया, तो वो भविष्य के बारे में था।
दूसरी तरफ, ये प्रभु यीशु मसीह के दूसरे वचनों को जो हमको सुसमाचार में मिलते हैं; जो प्रभु यीशु मसीह ने कहे थे कि स्वर्ग का राज्य पहले ही आ चुका है तो इस तरह से हमको इस में एक तरह का विरोधाभास मिलता हैं। (मत्ती 6:10; लुका 11:2; मत्ती 7:21-23)
वर्तमान राज्य
तो ऊपर हम ने जिस दृष्टिकोण को पढ़ा जो कि जर्मनी में पैदा हुआ था लेकिन इसके विपरीत इंग्लैंड में एक और दृष्टिकोण पैदा हो गया था। इस दृष्टिकोण के अनुसार यीशु ने प्रतीक्षित (जिसका यहूदी लोग इंतजार कर रहे थे) राज्य के आने की घोषणा की थी। हालांकि, उन्होंने यह घोषणा नहीं की कि यह निकट भविष्य में आ रहा है। इसके विपरीत, उन्होंने घोषणा की, कि यह पहले ही आ चुका है।
अब यीशु मसीह के सेवकाई के दौरान परमेश्वर का राज्य पहले ही आ चुका था। ये विचारधारा वो हैं जो इस बात को कहते है कि सुसमाचार में यीशु मसीह ने इस बात की घोषणा की कि परमेश्वर का राज्य आ चुका हैं। वे ये इस बात को नहीं कहते कि परमेश्वर का राज्य बस नजदीक हैं। परंतु इसके विपरीत वो कहते हैं कि परमेश्वर का राज्य आ चुका हैं। (मत्ती 12:28)।
निष्कर्ष
ये तो बहुत स्पष्ट है कि आखिर के दो दृष्टिकोण यानि के भविष्य और वर्तमान राज्य के विषय में बाइबल सहयोग करती हैं। पर पहले के दो विचारों को बाइबल का कोई भी सहयोग नहीं मिलता।
बाइबल के सहयोग से देखा जाए तो बाइबल भविष्य और वर्तमान दोनों दृष्टिकोण को सहारा देती है, उदाहरण के लिए, ये बहुत ही स्पष्ट है कि परमेश्वर का राज्य भविष्य का हैं, प्रभु यीशु ने जैसा प्रार्थना में सिखाया कि तेरा राज्य आये (लुका 11:2); और जब यीशु मसीह ने कहा, “कि हर कोई जो मुझे हे प्रभु प्रभु कहता हैं उन मे से हर कोई स्वर्ग के राज्य में प्रवेश ना करेगा”। ये भी भविष्य की ओर संकेत करता हैं (मत्ती 7:21-23)।
उपरोठी में यीशु मसीह ने अंतिम भोज के समय में अपने चेलों को कहा था मैं तुम से सच कहता हूं, कि दाख का रस उस दिन तक फिर कभी न पीऊंगा, जब तक परमेश्वर के राज्य में नया न पीऊं (मरकुस 14:25)। बाइबल के कई और दूसरे हिस्से परमेश्वर के राज्य को आने वाली अंतिम नए में भी दिखाते हैं (मत्ती 5:19-20; 8:11-12; 25:31-46; लुका 13:22-30)।
वहीं दूसरी तरह देखा जाए तो परमेश्वर का राज्य अभी मौजूद है ये भी बहुत ही साफ तौर से लिखा हुआ हैं। लुका 11:20 परन्तु यदि मैं परमेश्वर की सामर्थ से दुष्टात्माओं को निकालता हूं, तो परमेश्वर का राज्य तुम्हारे पास आ पहुंचा। बाइबल के दूसरी जगहों पर भी ऐसा ही बताया गया है कि परमेश्वर का राज्य आ चुका हैं (रोमियों 9:31; 2 कुरिनथियों 10:14; फिलिपियों 3:16; 1 थिस्सलुनीकियों 4:15)
तो अब जो सवाल उठता है कि कैसे कोई ये फैसला करें कि परमेश्वर के राज्य के दृष्टिकोणो में से कौन-सा सही हैं? क्योंकि दोनों के पास ही बाइबल का सहारा हैं पर यदि हम वोट का सहारा लेंगे तो ये निश्चित है कि भविष्य वाले ही जीतेंगे।
क्योंकि उनके पास ज्यादा बाइबल की आयतें हैं जो यह बताती है कि परमेश्वर का राज्य भविष्य का है। पर हम यह नहीं कर सकते। हमे पहले बाइबल में से अच्छी तरह से समझना होगा कि राज्य का अर्थ क्या हैं? तब शायद हम “परमेश्वर के राज्य” को समझ पाएंगे। तो इसके लिए हमको बाइबल का अच्छे से अध्ययन करना होगा।
बाइबल के अर्थ में परमेश्वर का राज्य क्या हैं?
बाइबल में हमको दो भाग मिलते है पुराना नियम और नया नियम। दोनों ही में “राज्य” शब्द को स्वभाव में गतिशील और एक राजा के द्वारा राज्य करने के” रूप में समझा गया हैं। जिसके परिणाम में बहुत सारे लोगों ने “परमेश्वर के राज्य’ को परमेश्वर के शासन के रूप में समझा। और इस से हम समझ सकते हैं कि यीशु मसीह ने भी परमेश्वर के राज्य के विषय में ऐसा ही समझा था और समझाया था। इसके कारण हमें बाइबल में मिलते हैं (लुका 19:12; 15; मत्ती 6:33 और मरकुस 10:15)
यीशु मसीह के लिए परमेश्वर के राज्य को परमेश्वर के राज्य में समझना संभव है। और ऐसा कहना कि परमेश्वर का राज्य आ पहुंचा है ये भी संभव है क्योंकि प्रभु यीशु ने पुराने नियम की भविष्यवाणी को पूरा किया हैं जबकि यीशु मसीह के आने से शैतान हराया जा चुका हैं (लुका 10:18; 11:20-22)।
तित्तर बित्तर हुये इस्राइली लोगों को इकठ्ठा किया जैसा कि भविष्यवाणी थी (मरकुस 2:15-16; लुका 14:15-24), पुराने नियम की भविष्यवाणियाँ पूरी हुई हैं (लुका 10:23-24), मरे हुये का जी उठना शुरू हुआ (1 कुरिनथियों 11:25), पवित्र आत्मा आया जैसा कि भविष्यवक्ताओं ने कहा था (मरकुस 1:8), इस तरह से सचमुच में परमेश्वर का राज्य उनके बीच आ चुका हैं।
फिर भी, परमेश्वर के राज्य का समापन (पूर्ण) होना अभी भी भविष्य में हैं। मनुष्य के पुत्र का आना, अंतिम मुरदों का जी उठना; विश्वास का वास्तविकता में होना अभी भी भविष्य में हैं। तो परमेश्वर का राज्य अभी भी और भविष्य में दोनों ही पहलू में हैं। इस कारण अभी भी परमेश्वर का राज्य है और आने वाला भी हैं। परमेश्वर के राज्य में ये दोनों पहलू एक साथ हैं। हम इनको अलग अलग नहीं कर सकते। ये कोई विरोधाभास नहीं है बल्कि राज्य की प्रकृति ही ऐसी हैं इसको आप इस तरह से समझ सकते हैं।
पुराने नियम में की गई परमेश्वर के राज्य की भविष्यवानिया नए नियम में पूरी हुई है और जो नई वाचा है उसकी स्थापना हो चुकी है पर उसकी सम्पूर्ण प्रगटिकरण और परिपूर्णता भविष्य में है। तब तक हमको अच्छे और विश्वासयोग्य सेवक की तरह रहना हैं (लुका 19:11-27)3.0 कुछ बातें जिन से सावधान रहना हैं।हमें अपने आप का बहुत ही ज्यादा ध्यान रखना होगा
क्योंकि परमेश्वर का राज्य के दो पहलू है एक अभी जिस में परमेश्वर का राज्य आ चुका हैं और दूसरा पहलू कि परमेश्वर का राज्य आने वाला (भविष्य में) हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुये हमें इस बात से सावधान रहना है कि अगर कोई भी परमेश्वर कए राज्य के सिर्फ एक ही पहलू पर जोर देता है तो हमें उससे दूर रहना हैं।
जिस पहलू पर सबसे ज्यादा जोर दिया जाता है वो ये है कि परमेश्वर के राज्य आ चुका हैं जो कि चिन्ह, चमत्कार, चंगाई और पाप पर विजय और परमेश्वर द्वारा कलीसिया को दिए गए वरदान है उन पर जोर देते है जिस के कारण वो परमेश्वर के राज्य के भविष्य वाले पहलू को अनदेखा कर देते है। जिससे वो धोखे में जीते हैं। यीशु मसीह मे अंतिम समय के क्लेशों की शिक्षा देते समय इस बात के विषय में चेतावनी दी थी।
हमको ये भी नहीं भूलना के हम अभी भी परमेश्वर के राज्य में जी रहे हैं। हमको हर तरह की निराशा और उदासी को दूर करते हुए परमेश्वर के राज्य में जीना है क्योंकि प्रभु यीशु मसीह ने कहा कि नरक के दरवाजे कलीसिया पर प्रबल नहीं होंगे (मत्ती 16:18)। हमको अपने जीवन जो “परमेश्वर के राज्य के मुताबिक जीना हैं।दूसरे भाई विश्वासी भाई-बहनों को भी ये भेजे ताकि वो भी परमेश्वर के राज्य के बारे में जान सकें।
तो आज अवसर है कि आप भी परमेश्वर के आत्मा को अपने जीवन में काम करने दे। अपने पापों को परमेश्वर के पुत्र के सामने अंगीकार करे और यीशु मसीह को अपने उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करे।
विश्वास करें कि यीशु मसीह का बलिदान के द्वारा ही आप अपने सारे पापों से क्षमाप्राप्त कर सकते हैं।इस बात पर विश्वास करे कि यीशु मसीह मेरे ही पापों के लिए क्रूस पर कुर्बान हुया और कब्र में रखा गया। और परमेश्वर ने उसे मुरदों में से तीसरे दिन जीवित किया। और परमेश्वर का राज्य में शामिल हो जाइए।
इस लेख को आगे भी शेयर करें ताकि दूसरे मसीह भाई-बहन यीशु मसीह और परमेश्वर के बारे में जान सकें। और यदि आपके आप कोई और सुझाव या सवाल है तो नीचे comment में जरूर लिखें।
परमेश्वर के गुणों के बारे में और जानने के लिए यहाँ टच करें