परमेश्वर का प्रभुत्व क्या हैं?
परमेश्वर का प्रभुत्व का अर्थ यह है कि परमेश्वर सब वस्तुओं और सब मनुष्यों पर प्रभुता या अधिकार रखता है। परमेश्वर का अधिकार पूरे ब्रम्हांड में हैं। परमेश्वर का प्रभुत्व इस बात की पुष्टि करता है कि परमेश्वर बिल्कुल आजाद है। ये भी परमेश्वर के गुणों में से एक गुण हैं।। परमेश्वर जैसा चाहता है और जैसा उसको भाता है उसे वैसा ही करने के लिए पूर्ण रीति से आजाद हैं। उसके लिए परमेश्वर को किसी की भी अनुमति की जरूरत नहीं हैं। (यशायाह 46:10; इफिसियों 1:11; भजन 135:6; दानिएल 4:35)।
हमारे प्रभुत्व और परमेश्वर के प्रभुत्व में क्या फर्क हैं ?
अब हम बात करेंगे प्रभुता की, यानि कि जिसकी हकूमत या जिसका हुक्म सब पर चलता हो।
जब एक व्यक्ति “प्रभुता” शब्द के बारे में सोचता है तो उसके मन में ‘राजा की तरह सिहांसन पर विराजमान होकर सब पर अपना हुक्म चलाने’ की तस्वीर का निर्माण होता है। यह हर इंसान की चाहत है कि सब लोग वैसा ही करे जैसा वो चाहता है। परन्तु ऐसा संभव नही हो सकता। क्योंकि इन्सान केवल अपनी भलाई को ध्यान में रख कर काम करता है अब इस में एक समस्या पैदा हो जाती हैं जो आपके लिए अच्छा है जरूरी नहीं है के वो दूसरे के लिए भी अच्छा ही हो ।
परंतु परमेश्वर के साथ ऐसा नहीं हैं। परमेश्वर हम सब पर राज्य तो करता हैं। पर हम सब को अपने वश में नहीं रखता।परमेश्वर जो कुछ भी करता हैं वह सबकी भलाई के लिए होता हैं उसमें सबका भला ही होता हैं इस बात से आप इस बात को समझ सकते हैं कि हमारे अधिकार (प्रभुत्व) और परमेश्वर के प्रभुत्व मे सबसे बडा अंतर हैं।
दूसरा अंतर, हम सब एक दूसरे के साथ बंधे हुए है। हम जो भी निर्णय लेते है उस में किसी ना किसी से प्रभावित अवश्य ही होता है। जिसमें अधिकतर हमारे मन की भावना ही हमारे निर्णय को प्रभावित करती है।
तो क्या परमेश्वर भी ऐसे ही किसी के साथ बंधा हुआ है? जी नहीं, बिल्कुल भी नहीं, परमेश्वर वैसे काम नहीं करता जैसा हम सोचते है। परमेश्वर किसी के साथ भी बंधा हुआ नहीं हैं। परमेश्वर हर काम को करने के लिए सम्पूर्ण रीति से आजाद हैं जैसा कि मैंने पिछले लेखों में भी बताया है कि हमारी समझ परमेश्वर को समझने के लिए पर्याप्त नहीं है। क्योंकि हमारी एक सीमा है। जबकि परमेश्वर असीमित है।
अब हम बात करेंगे परमेश्वर के प्रभुत्व की। आपको इंटरनेट पर बहुत सारे ऐसे लेख मिल जाएंगे जो परमेश्वर के प्रभुत्व के बारे में बताते है। पर मेरा उदेश्य है कि हमारे उन मसीह लोगों और समाज के दूसरे लोगों के साथ परमेश्वर के बारे में उन्ही के स्तर पर बात की जा सके।
परमेश्वर का प्रभुत्व क्या प्रभाव डालता है?
ये लेख ‘परमेश्वर के प्रभुत्व’ के बारे में सिर्फ एक आधार हैं ताकि आपकी एक अच्छी नीव तैयार हो सके और आपको ‘परमेश्वर के प्रभुत्व’ को समझने में मदद मिल सके।अगर आपको लगता हैं कि परमेश्वर का प्रभुत्व ये हैं कि प्रभु ऊपर बैठ कर सब पर बस हुकम चला रहा है। परमेश्वर अपने मन की मर्जी के मुताबिक़ हमको कठपुतली के समान नचा रहा हैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं है।
परमेश्वर का प्रभुत्व ही परमेश्वर को परमेश्वर बनाता है।

परमेश्वर ने सब कुछ बनाया है। सब कुछ परमेश्वर के नियंत्रण में है। कुछ भी परमेश्वर के नियंत्रण से बाहर नहीं हैं। जो कुछ भी होता है वह सब परमेश्वर की इच्छा और उसकी योजना के मुताबिक होता है। क्योंकि परमेश्वर सब पर अपना अधिकार रखता है। और कोई भी या कुछ भी करके परमेश्वर को रोक नहीं सकते। परंतु इसका अर्थ ये नहीं हैं कि परमेश्वर हमारे साथ जबरदस्ती करता हैं।
तो आपको एक बात को हमेशा याद रखना है कि परमेश्वर के प्रभुत्व में परमेश्वर के सारे गुण एक साथ आते है और परमेश्वर का कोई भी गुण परमेश्वर के दूसरे गुण का विरोध नहीं करता । ये ही परमेश्वर के प्रभुत्व का सबसे बड़ा प्रभाव हैं।
परमेश्वर सर्व-शक्तिमान हैं
परमेश्वर को रोकने की ताकत किसी में भी नहीं हैं। क्योंकि परमेश्वर के बिना कोई मौजूद ही नहीं रह सकता। सब कछ परमेश्वर में और परमेश्वर के लिए हैं।( कुलूसियों 1:15-17)
परमेश्वर में सब वस्तुओं का पूर्णता हैं
सब वस्तुएं चाहे मनुष्य हो या जानवर या प्रकृति सब कुछ परमेश्वर को महिमा देने के लिए हैं और हम सब का स्रोत परमेश्वर ही हैं।
परमेश्वर अनंत हैं
परमेश्वर का प्रभुत्व अनंत काल से हैं। यानि कि वो हमेशा से ही हैं उसकी कोई शुरुआत नहीं हुई। चाहे सृष्टि बनी हो या ना बनी हो। परमेश्वर का प्रभुत्व हमेशा ही रहेगा।
परमेश्वर जीवन हैं
परमेश्वर का प्रभुत्व ही परमेश्वर को हमारे जीवन का कर्ता बना देता हैं। इसलिए परमेश्वर का प्रभुत्व हम पर प्रभुत्व करता हैं। क्योंकि हमारे जीवन का स्रोत परमेश्वर हैं।
परमेश्वर का प्रभुत्व और मनुष्य की जिम्मेदारी
जब हम परमेश्वर के प्रभुत्व के बारे में बात करते है तो हम बहुत ही प्रश्नवादी हो जाते है। हम बहुत सारे सवालों के साथ अपने दिमाग के घोड़े दौड़ना शुरू कर देते हैं। जैसे कि जब सब कुछ परमेश्वर के नियंत्रण में है तो परमेश्वर सब कुछ ठीक क्यूँ नहीं कर देता? मेरे जीवन में ही ऐसा क्यों हो रहा है? पर परमेश्वर के प्रभुत्व को समझने के साथ साथ हमे इस बात को भी समझना है कि परमेश्वर का प्रभुत्व और मनुष्य की जिम्मेदारी साथ साथ चलती है।
हम ये कह कर कि परमेश्वर सब वस्तुओं पर अधिकार रखता है, परंतु मनुष्य अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकते। हम परमेश्वर के प्रभुत्व को लेकर परमेश्वर पर सवाल नहीं कर सकते (यशायाह 45:9)। इस बात को समझने के लिए कि परमेश्वर का प्रभुत्व और मनुष्य की जिम्मेदारी कैसे एक साथ चलते हैं, हम कुछ बातो पर गौर करेंगे।
परमेश्वर ने आदम को अदन की बारी में रखा। उसके साथ परमेश्वर ने आदम को कुछ करने की और कुछ ना करने की आज्ञा दी जो कि आदम की जिम्मेदारी थी। अब परमेश्वर को पता था कि आदम क्या करेगा और क्या नहीं। पर जो कुछ आदम ने किया वो उसकी जिम्मेदारी थी ना कि परमेश्वर की। परमेश्वर ने आदम के लिए एक आधार या एक जीवनशैली को तैयार किया। परमेश्वर ने आदम को पूरे बाग की जिम्मेदारी दी थी। उसके बाद जो आदम ने पाप किया वो आदम की जिम्मेदारी थी ना कि परमेश्वर के प्रभुत्व के कारण ऐसा हुआ।
अब हम दूसरे उधारण से इस बात को देखेंगे। परमेश्वर ने इस्राइल को चुना जो कि परमेश्वर के प्रभुत्व में है, उसके साथ ही परमेश्वर ने उनको व्यवस्था भी दी जो उनकी जिम्मेदारी थी इज़राइल के अब लोग व्यवस्था के मुताबिक चले। अब ये सब कुछ सही है क्योंकि परमेश्वर ने किया है। ये सब एक छोटा सा एक उदाहरण है ताकि हम समझ सके कि परमेश्वर का प्रभुत्व और हमारी जिम्मेदारियाँ साथ साथ है।

परमेश्वर के प्रभुत्व का पाप पर भी अधिकार हैं ।
जैसा कि मैंने पहले कहा है कि परमेश्वर ने पाप को पैदा नहीं किया पर परमेश्वर ने पाप को होंने दिया। ये शायद आपको अजीब लगे पर सच ये ही है। उसके लिए परमेश्वर का एक उदेश्य है। पर हम परमेश्वर पर दोष नहीं लगा सकते।
वह पूरी तरह से पवित्र है ( 1 शमूअल 2:2)। इस बात को मत सोचिए कि परमेश्वर पाप को रोक नहीं सकता था या परमेश्वर के पास इतनी सामर्थ नहीं है। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। इसके पीछे परमेश्वर का अपना खुद का कोई उदेश्य है और परमेश्वर का उदेश्य क्या है हम पूरी तरह से नहीं जानते, लेकिन अगर एक नजरिए से देखा जाये तो परमेश्वर ने पाप को आने दिया ताकि परमेश्वर अपनी महिमा को प्रगट कर सके।
परमेश्वर के गुण पाप की नामौजूदगी में प्रगट नहीं हो सकते थे। जैसे कि परमेश्वर की दया, अनुग्रह, तरस, क्षमा, उद्धार। और ऐसा क्यों हैं और परमेश्वर ने ऐसा क्यों होने दिया इसके बारे में पवित्रशास्त्र में हमको कुछ भी नहीं बताया गया हैं (उत्पति 45:7-9; रोमियों 8:28)
परमेश्वर का प्रभुत्व हमें आराधना के लिए प्रेरित करता हैं

परमेश्वर का प्रभुत्व हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। क्योंकि परमेश्वर सबसे ऊपर है तो हमारे बारे में वह सब कुछ जानता है। कुछ भी उससे छिपा हुआ नहीं है। परमेश्वर का प्रभुत्व हमे परमेश्वर की आराधना करने लिए उत्साहित करता हैं। हमारे जीवन की हर एक परस्थितियाँ परमेश्वर के नियंत्रण में है।
चाहे हम अच्छे समय में हो या बुरे समय में एक बात तो निश्चय है कि मेरा परमेश्वर मेरे साथ है और कुछ भी उसके नियंत्रण से बाहर नहीं है। हो सकता हैं ये बातें मनुष्य की समझ से परे और समझने में मुश्किल है परंतु पवित्र शास्त्र हमे यही सिखाता है।इस लेख को दूसरों के साथ भी साँझा करें ताकि वे भी “परमेश्वर का प्रभुत्व” जान सके। अपने परमेश्वर के गुणों को पहचान सके और विश्वास में मजबूत हो सकें।