परमेश्वर का क्रोध क्या हैं?

परमेश्वर का क्रोध भी परमेश्वर के गुणों मे से एक गुण हैं। लेकिन ये बहुत ही भयानक और डरावना शब्द है। हम ने बचपन से सुना है कि क्रोध से दूर रहना चाहिए, कम से कम गुस्सा करना चाहिए। और हम अपने आस पास देखते भी है कि क्रोध कारण बहुत सारे परिवार उजड़ जाते है, बहुत सारी समस्याएं घरों में पैदा हो जाती है। मनुष्य का सबसे कमजोर हिस्सा क्रोध है, क्योंकि ये आपकी सोचने और समझने की ताकत को लगभग ना के बराबर कर देता है।
जब एक व्यक्ति क्रोधित होता है उसके साथ साथ दूसरा भी क्रोधित हो जाता है और फिर बात लड़ाई झगड़े पर आ जाती है और अंत मैं कोई ना कोई दुखदायक घटना हो जाती है। परंतु कभी कभी क्रोध करना अच्छा भी होता है अगर वो सही बात के लिए हो।
हमे ये क्रोध करना परमेश्वर से मिला है। परंतु हमारा क्रोध पाप से ग्रसित है जबकि परमेश्वर का क्रोध पवित्र है। तो आज के इस लेख में हम यही समझने का प्रयास करंगे। इसके साथ ही मैं चाहता हूँ कि इसको आप दूसरों को भी शेयर करे ताकि आपके चाहने वाले भी परमेश्वर के क्रोध से बचे और अच्छे से जान सके।
तो सबसे पहले हमे एस बात को समझना होगा कि परमेश्वर के क्रोध से हम क्या समझते है? अगर हमे परमेश्वर के क्रोध को लेकर सही समझ होगी तो ही हम परमेश्वर के इस गुण को अच्छे से जान पाएंगे। तो हमे पहले परमेश्वर के क्रोध की परिभाषा को जानना है
“दिव्य क्रोध परमेश्वर का धार्मिक गुस्सा और दंड है जो पाप पर आता है”
मुझे लगता है कि ये हमारे इस अध्ययन के लिए पर्याप्त है। तो हम इस परिभाषा को अपने जहन में रख कर अपने इस अध्ययन को जारी रखेंगे। परमेश्वर का क्रोध हर किसी बात पर नहीं आता परंतु तब आता है जब परमेश्वर की बात को नहीं माना जाता (इफिसियों 5:6; रोमियों 1:18-32)।
परमेश्वर का क्रोध पवित्र हैं।
हम पहले ही देख चुके है कि परमेश्वर, पवित्र परमेश्वर है। और जब बात परमेश्वर के क्रोध की आती है तो परमेश्वर का क्रोध भी पवित्र है क्योंकि परमेश्वर अपने किसी भी दूसरे गुणों का उलंघन नहीं करता। इसलिए जब हम परमेश्वर के क्रोध की बात करेंगे तो इसको अपने जहन में रखे कि परमेश्वर का क्रोध पवित्र है।
बहुत सारे मसीह विश्वासी भाई बहन इस धोखे में जीते है कि परमेश्वर का क्रोध तो पुराने नियम में था जब व्यवस्था थी। अब हम अनुग्रह के समय में है औरअब परमेश्वर का क्रोध नहीं है। अब हम परमेश्वर के प्रेम के नीचे है। वो सोचते है कि परमेश्वर का क्रोध भूतकाल है और ये अब जब यीशु मसीह आएगा तब होगा। जोकि परमेश्वर को लेकर एक बहुत ही बड़ी गलत धारणा है।
ए. डब्लू. पिंक इस तरह से कहते है,
“यह बहुत ही दुख की बात है बहुत सारे जो खुद को ईसाई कहते है वो परमेश्वर के क्रोध को ऐसे मानते है जैसे उन्हें किसी बात की माफी माँगनी है। और वो ऐसी उम्मीद करते है कि काश! कोई ऐसी बात ही ना हो। और कुछ तो खुले दिल से इस बात को स्वीकार भी नहीं करेंगे वो परमेश्वर के क्रोध को परमेश्वर के बाकी गुणों पर एक कलंक मानते है। फिर भी वे इसके बारे में खुशी से दूर है वे इस बारे में सोचना भी पसंद नहीं करते।
वे इसका उल्लेख करते हुये बहुत ही कम सुनाई देंगे बिना किसी दुख के जो उनके दिल में इसके प्रति उठता है, यहाँ तक कि वे भी जो अपने फैसले को लेकर शांत है उन्मे से भी बहुत सारे यह कल्पना कर सकते है कि परमेश्वर के दिव्य क्रोध पर एक लाभदायक विषय को बनाना बहुत ही मुश्किल काम है। दूसरे इस बात से भ्रमित हो रखे है कि परमेश्वर का क्रोध परमेश्वर की अच्छाई के साथ नही रह सकता, तो वे इसको अपने विचारों से दूर ही रखते है।
हाँ, बहुत सारे परमेश्वर के क्रोध के दर्शन से दूर हो गए है जैसे कि उन्हे परमेश्वर के दिव्य चरित्र में से कुछ धब्बा या आलोकिक सरकार में से कुछ गलतिया निकालनी है। परंतु पवित्रशास्त्र क्या कहता है? जैसे ही हम पवित्रशास्त्र की और देखते है तो पाते है कि परमेश्वर ने अपने क्रोध को छिपाने के लिए कुछ भी नहीं किया। परमेश्वर को इस बात से कोई भी शर्म नहीं है । क्रोध और बदला परमेश्वर से संबंध रखता है”।
परमेश्वर का क्रोध बाइबल में सिर्फ सिखाया ही नहीं गया बल्कि ये बाइबल का एक प्रमुख सत्य है। जैसा कि ए. डब्लू. पिंक इस तरह से कहते है
“कि शब्दानुक्रमणिक (कान्कॉर्डन्स) के अनुसार बाइबल में परमेश्वर के प्रेम से ज्यादा परमेश्वर के क्रोध के बारे में ज्यादा आयते हैं”। ए. डब्लू. पिंक
परमेश्वर का क्रोध परमेश्वर के गुणों का उतना ही भाग है जितना कि परमेश्वर के दूसरे गुण है ये भी परमेश्वर के गुणों में से एक है। जितना ज्यादा हम परमेश्वर के दूसरे गुणों पर यकीन करते है उतना ही हमे परमेश्वर के क्रोध पर यकीन करना चाहिए।

पुराने नियम में परमेश्वर का क्रोध
परमेश्वर के क्रोध को हम पुराने नियम में आसानी से देख सकते है। परंतु पुराना नियम सिर्फ परमेश्वर के क्रोध को उसके एक गुण के जैसा ही नहीं बल्कि परमेश्वर के क्रोध को उसकी महिमा का एक हिस्सा बताता है। परमेश्वर का क्रोध परमेश्वर के लिए शर्मनाक नहीं है, परमेश्वर को मनुष्य के जैसे शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं है।
जैसे हम कई बार अपने आपे से बाहर हो जाते है और बाद में शर्मिंदा होते है, परमेश्वर के साथ ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। जब परमेश्वर क्रोध करता है तब परमेश्वर अपनी महिमा को दिखाता है । परमेश्वर का क्रोध तब भड़कता है जब मनुष्य परमेश्वर के वचन के विरुद्ध जाता है। जब परमेश्वर ने इस्राइलियों को मिस्र से छुड़ाया था उसके बाद परमेश्वर ने इस्राएलियों को मानने के लिए व्यवस्था को दिया ताकि वे दूसरे लोगों से अलग होकर एक पवित्र जीवन को बिताए और परमेश्वर उनके बीच में वास करे।
व्यवस्थविवरण 28:1-14 में हमे परमेश्वर की आज्ञा को मानने की आशीषों के बारे में बताया गया है और वही 15-68 तक परमेश्वर की आज्ञा को ना मनाने से आने वाले श्राप के बारे में बताया गया है। पुराना नियम इस्राइलियों की गलतियों से भरा पड़ा है। गिनती 16 में परमेश्वर ने कोरह, दातान और अबिराम को दण्ड दिया था क्योंकि उन्होंने 250 और लोगों के साथ मिल कर मूसा का विरोध किया था जिसको परमेश्वर ने उनका अगुवा होने के लिए चुना था। और फिर हम यहाँ पर परमेश्वर के क्रोध को देखते है जो उन लोगों पर पड़ा।
पुराने नियम में सिर्फ इस्राइल के लोगों पर ही नहीं परंतु दूसरे लोगों पर भी परमेश्वर का क्रोध आया। उत्पति 6, 7, 8, 9 अध्याओं में हमे ये मिलता है जब सारी धरती के लोग पाप की और बढ़ते जा रहे थे तब परमेश्वर ने बाढ़ के द्वारा सब का नाश कर दिया था। क्योंकि परमेश्वर पाप को बिल्कुल भी सहन नहीं करता।
परमेश्वर ने सदोम और अमोरा जैसे गंदे लोगों का भी नाश किया (उत्पति 19)। इस तरह से हम पुराने नियम में परमेश्वर के क्रोध के बारे में देख सकते है।लेकिन अगर आप परमेश्वर के वचन के अच्छे मनन करने वाले है, तो आप भविष्य में परमेश्वर के आने वाले बहुत भयानक क्रोध के बारे में जानते होंगे जिसे “यहोवा का दिन” करके बताया गया है।
नए नियम में परमेश्वर का क्रोध
अब जो इस बात को स्वीकार करते है कि परमेश्वर जो है वो क्रोध करने वाला परमेश्वर भी है पर ये ज्यादा तर पुराने नियम में ही हमे मिलता है। नये नियम में हम परमेश्वर के अनुग्रह के नीचे है तो आज हम पर परमेश्वर का क्रोध नहीं है और अपनी ज़िन्दगी को जैसा चाहते है वैसे ही जीते है। लेकिन ऐसा नहीं है।
नये नियम की शुरुआत में ही हमे यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला का संदेश मिलता है, जो पुराने नियम का आखिरी भविष्यवक्ता भी था। यूहन्ना के अनुसार परमेश्वर का क्रोध मसीह के आगमन के साथ संबंधित है। पहला कि मसीहा परमेश्वर के क्रोध को अनुभव करेऔर दूसरा ये कि मसीहा ही है जो परमेश्वर के क्रोध को पूरा करेगा। तो हम अब इसको ऐसे समझने की कोशिश करेंगे।
यीशु मसीह पर परमेश्वर का क्रोध कैसे दिखाई दिया?

पहला, जब यूहन्ना ने यीशु मसीह को देखा जब वह यरदन नदी में बपतिस्मा दे रहा था तो यूहन्ना ने कहा कि देखो परमेश्वर का मेमना जो जगत का पाप उठा ले जाता है (यूहन्ना 1:29)। परमेश्वर का मेमना मतलब जो पाप को उठाने वाला। अब जो ये वाक्य यूहन्ना ने बोला था वो पुराने नियम की और इशारा करता है।
अगर आपने पुराना नियम पढ़ा है तो आपको फसह के मेमने के बारे में (निर्गमन 12) याद होगा जो मसीह यीशु की एक छाया के रूप में था (1 कुरिनथियों 5:7)। और फिर हम यशायाह नबी की किताब में भी पढ़ते है कि नबी हमे एक परमेश्वर के मेमने के बारे में बताता है (यशायाह 53:4-8; 10-11). ये भविष्यवाणी मसीह यीशु के विषय में ह, मसीह के दुखों के बारे में कि कैसे मसीह परमेश्वर के क्रोध को सहेगा।
क्योंकि उस पर सारे जगत के पाप का बोझ डाल दिया जाएगा। जिस वजह से परमेश्वर का क्रोध उस पर आएगा। और हम गतसमनी के बाग की घटना से इस बात का अंदाजा लगा सकते है। (मत्ती 26:38; लुका 22:44). नये नियम में सुसमाचारों में हम इस बात को पाते है और उसके बाद चेलों ने इस बात का प्रचार किया। परंतु निए नियम में हम एक धर्मविज्ञान का एक ऐसा शब्द पाते है कि पापी, परमेश्वर के क्रोध के नीचे थे।
वो शब्द है “प्रायश्चित” ये शब्द जो है परमेश्वर के पवित्र क्रोध की संतुष्टि के बारे में बताता है (रोमियों 3:24-26; 1 यूहन्ना 2:2; 1 यूहन्न 4:10)। “प्रायश्चित” का अर्थ है कि परमेश्वर का क्रोध उन पर शांत है जिन्होंने यीशु मसीह पर विश्वास किया है। यही तो खुश खबरी है कि जिन्होंने यीशु मसीह पर परमेश्वर के मेमने के रूप में विश्वास किया है वो अब उस ईश्वरीय दंड के नीचे नहीं है (इफिसियों 2:1-10; 1 थिस्सलुनीकियों 1:9-10; 5:9 )।
यीशु मसीह परमेश्वर के क्रोध को कैसे पूरा करेगा?
अब हम आते है दूसरे बिन्दु पर कि यीशु मसीह ने परमेश्वर के क्रोध को पूरा किया। जैसा यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने कहा था मसीह ही वो है जो परमेश्वर के क्रोध को पूरा करेगा (मत्ती 3:5-12). यदपि हमारे प्रभु यीशु मसीह के आने का पहला उदेश्य ये नहीं था। परंतु फिर भी यीशु मसीह ने कई जगह पर परमेश्वर के क्रोध को दिखाया है।
प्रभु यीशु को क्रोध आया जब उन्होंने यहूदी लोगों के अगुवों को मंदिर की आराधना को एक व्यापार का जरिया बना दिया था (यूहन्ना 2:13-17; मत्ती 21:12-13)। यीशु मसीह ने खुद बताया कि आने वाले समय में परमेश्वर का भयानक क्रोध पापियों पर आने वाला है (मत्ती 24:15-22; 48-51; लुका 21:20-28 ) भविष्य में परमेश्वर का क्रोध का आना निश्चय है।
क्योंकि मानवजाति के पापों की क्षमा के लिए जो प्रोयजन किया है उसे मानवजाति स्वीकार करने से मना करती आ रही है। परमेश्वर ने पापियों के लिए अपने पुत्र को कलवरी के क्रूस पर बलिदान किया। परमेश्वर ने अपने क्रोध को अपने पुत्र पर उंडेल दिया जो मेरे और आपके पापों के कारण था। (कुलुस्सियों 2:14-15)
परमेश्वर के क्रोध में भी हम परमेश्वर की महिमा को देख सकते है । जो कोई भी इस बात पर को स्वीकार करके विश्वास करता है परमेश्वर का क्रोध उस पर से हट जाता है क्योंकि उसके बदले में यीशु मसीह ने परमेश्वर के क्रोध को झेला है (प्रेरितों 3:18-23)। प्रकाशित वाक्य हमे उस क्रोध के बारे में बताता है जो आने वाला है उससे बचने का सिर्फ एक ही जरिया है यीशु मसीह पर विश्वास (प्रकाशितवाक्य 6:12-17; 16:1-11; 19:11-16)।
तो आज अवसर है अपने पापों को परमेश्वर के पुत्र के सामने अंगीकार करे और यीशु मसीह को अपने उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करे। विश्वास करें कि यीशु मसीह का बलिदान के द्वारा ही आप अपने सारे पापों से क्षमा प्राप्त कर सकते हैं। इस बात पर विश्वास करे कि यीशु मसीह मेरे ही पापों के लिए क्रूस पर कुर्बान हुया और कब्र में रखा गया। और परमेश्वर ने उसे मुरदों में से तीसरे दिन जीवित किया। ये ही परमेश्वर का प्रेम हैं जो आपको परमेश्वर के पास ले आता हैं
इस लेख को आगे भी शेयर करें ताकि दूसरे मसीह भाई-बहन यीशु मसीह और परमेश्वर के बारे में जान सकें।